विवेचना SOP (323,324,325,326,326क,326ख भा0द0वि0 मारपीट)
इन्डेक्स
1- उपहति, घोर उपहति की परिभाषा, दण्ड, प्रवृत्ति, चोटों का प्रकार।
2- मारपीट की घटना होने पर वर्कआऊट, साक्ष्य संकलन हेतु क्या-क्या करना चाहिये।
3- एफआईआर (चिक), कायमी मुकदमा, नकल चिक, नकल रपट, बयान वादी
4- बयानवादी व निरीक्षण घटनास्थल, नक्शा-नजरी, खूनालूद मिट्टी व सादी मिट्टी, खोखा/कारतूस व स्प्लीन्टर, फिंगर प्रिन्ट/ फुट प्रिन्ट, घटनास्थल की फोटोग्राफी
5- बयान गवाहान, चश्मदीद साक्षी, परिस्थितिजन्य साक्षी व मोटिव के साक्षी का बयान, 161 सीआरपीसी/164 सीआरपीसी
6- सीडीआर
8- विधि विज्ञान प्रयोगशाला में परीक्षण हेतु भेजे जाने वाले प्रदर्शों के सम्बन्ध में आवश्यक कार्यवाही
10- अभियुक्त की गिरफ्तारी होने पर कार्यवाही अथवा गिरफ्तारी नहीं होने की दशा में की जाने वाली कार्यवाही, रिमाण्ड व जमानत का विरोध
11- आरोप पत्र (चार्जशीट) / फाईनल रिपोर्ट (अन्तिम रिपोर्ट)
विवेचना SOP (323,324,325,326,326क,326ख भा0द0वि0 मारपीट)
उपहति (धारा 319 भा0द0वि0)- जो कोई किसी व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा, रोग या अंग-शैथिल्य कारित करता है, वह उपहति करता है, यह कहा जाता है।
घोर उपहति (धारा 320 भा0द0वि0)- उपहति की केवल नीचे लिखी किस्में “घोर” कहलाती हैः-
पहला- पुंसत्वहरण ।
दूसरा- दोनों में से किसी नेत्र की दृष्टि का स्थायी विच्छेदन ।
तीसरा- दोनों में से किसी भी कान की श्रवण शक्ति का स्थायी विच्छेदन ।
चौथा- किसी भी अंग या जोड़ का विच्छेदन ।
पांचवां- किसी भी अंग या जोड़ की शक्तियों का नाश या स्थायी ह्रास ।
छठा- सिर या चेहरे का स्थायी विद्रूपीकरण
सातवां- अस्थि या दांत का भंग या विसंधान ।
आठवां- कोई उपहति जो जीवन को संकटापन्न करती है या जिसके कारण उपहत व्यक्ति 20 दिन तक तीव्र शारीरिक पीड़ा में रहता है या अपने मामूली कामकाज को करने के लिए असमर्थ रहता है।
स्वेच्छया उपहति कारित करना (धारा 321 भा0द0वि0)- जो कोई किसी कार्य को इस आशय से करता है कि तद्द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित करे या इस ज्ञान के साथ करता है कि यह सम्भाव्य है कि वह तद्द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित करे और तद्द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित करता है, वह “स्वेच्छया उपहति करता है”, यह कहा जाता है।
स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना (धारा 322 भा0द0वि0)- जो कोई स्वेच्छया उपहति कारित करता है, यदि वह उपहति, जिसे कारित करने का उसका आशय है या जिसे वह जानता है कि उसके द्वारा उसका किया जाना सम्भाव्य है घोर उपहति है, और यदि वह उपहति, जो वह कारित करता है, घोर उपहति हो, तो वह “स्वेच्छया घोर उपहति करता है” यह कहा जाता है।
स्पष्टीकरण- कोई व्यक्ति स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, यह नहीं कहा जाता है । सिवाय जबकि वह घोर उपहति कारित करता है और घोर उपहति कारित करने का उसका आशय हो या घोर उपहति कारित होना वह सम्भाव्य जानता हो, किन्तु यदि वह यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह किसी एक किस्म की घोर उपहति कारित कर दे, वास्तव में दूसरी ही किस्म की घोर उपहति कारित है, तो वह स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है यह कहा जाता है।
उदाहरण- क यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह य के चेहरे को स्थायी रूप से विद्रूपित कर दे, य के चेहरे पर प्रहार करता है, जिससे य का चेहरा स्थायी रूप से विद्रूपित तो नहीं होता, किन्तु जिससे य को बीस दिन तक तीव्र शारीरिक पीड़ा कारित होती है। क ने स्वेच्छया घोर उपहति कारित की है।
स्वेच्छया उपहति कारित करने के दण्ड (धारा 323 भा0द0वि0)- उस दशा के सिवाय जिसके लिए धारा 334 में उपलब्ध है, जो कोई स्वेच्छया उपहति कारित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि 01 वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जायेगा ।
खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया उपहति कारित करना (धारा 324 भा0द0वि0)- उस दशा के सिवाय, जिसके लिए धारा 334 में उपलब्ध है, जो कोई असन, वेधन या काटने के किसी उपकरण द्वारा या किसी ऐसे उपकरण द्वारा जो यदि आक्रामक आयुध के तौर पर उपयोग में लाया जाये, तो उससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है, या अग्रि या किसी तप्त पदार्थ द्वारा, या किसी विष या किसी संक्षारक पदार्थ द्वारा या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा या किसी ऐसे पदार्थ द्वारा, जिसका श्वास में जाना या निगलना या रक्त में पहुँचना मानव शरीर के लिये हानिकारक है, या किसी जीव जन्तु द्वारा स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि 03 वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जायेगा ।
स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने के लिये दण्ड (धारा 325 भा0द0वि0)- उस दशा में सिवाय, जिसके लिये धारा 335 में उपबन्ध है, जो कोई स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि 07 वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा, और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा ।
खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना (धारा 326 भा0द0वि0)- उस दशा के सिवाय, जिसके लिये धारा 335 में उपबन्ध है, जो कोई असन, वेधन या काटने के किसी उपकरण द्वारा या किसी ऐसे उपकरण द्वारा जो यदि आक्रामक आयुध के तौर पर जब उपयोग में लाया जाये, तो उससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है, या अग्रि या किसी तप्त पदार्थ द्वारा, या किसी विष या संक्षारक पदार्थ द्वारा, या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा, या किसी ऐसे पदार्थ द्वारा, जिसका श्वास में जाना या निगलना या रक्त में पहुंचना मानव शरीर के लिये हानिकारक है, या किसी जाव जन्तु द्वारा स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि 10 वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
अम्ल,आदि का प्रयोग करके स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना (धारा 326क भा0द0वि0)- जो कोई किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग या किन्ही भागों को उस व्यक्ति पर अम्ल फेंककर या अम्ल देकर या किन्हीं अन्य साधनों का, ऐसा कारित करने के आशय या ज्ञान से कि वह सम्भाव्य है कि वह ऐसी क्षति या उपहति कारित करे, प्रयोग करके स्थायी या आंशिक नुकसान कारित करता है या अंग विकार करता है या जलाता है या विकलांग बनाता है या विद्रूपित करता है या निःशक्त बनाता है या घोर उपहति कारित करता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 10 वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा:
परन्तु ऐसा जुर्माना पीड़ित के उपचार के चिकित्सीय खर्चों को पूरा करने के लिये न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा :
परन्तु यह और कि इस धारा के अधीन अधिरोपित कोई जुर्माना पीड़ित को संदत्त किया जायेगा।
स्वेच्छया अम्ल फेंकना या फेंकने का प्रयत्न करना (धारा 326ख भा0द0वि0)- जो कोई, किसी व्यक्ति को स्थायी या आंशिक नुकसान कारित करने या उसका अंग विकार करने या जलाने या विकलांग बनाने या विद्रूपित करने या निःशक्त बनाने या घोर उपहति कारित करने के आशय से उस व्यक्ति पर अम्ल फेंकता है या फेंकने का प्रयत्न करता है या किसी व्यक्ति को अम्ल देता है या अम्ल देने का प्रयत्न करता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि 05 वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो 07 वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।
स्पष्टीकरण 1- धारा 326 क और इस धारा के प्रयोजनों के लिये “अम्ल” में कोई ऐसा पदार्थ सम्मिलित है जो ऐसे अम्लीय या संक्षारक स्वरूप या ज्वलन प्रकृति का है, जो ऐसी शारीरिक क्षति करने योग्य है, जिससे क्षतचिन्ह बन जाते हैं या विद्रूपता या अस्थायी या स्थायी निःशक्तता हो जाती है।
स्पष्टीकरण 2- धारा 326 क और इस धारा के प्रयोजनों के लिये स्थायी या आंशिक नुकसान या अंग विकार का अपरिवर्तनीय होना आवश्यक नहीं।
प्रवृत्ति व विचारण हेतु निर्धारित मजिस्ट्रेटः-
1- धारा 323 भा0द0वि0 में वर्णित अपराध असंज्ञेय तथा जमानतीय होता है व इसका विचारण किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकता है।
2- धारा 324 भा0द0वि0 का अपराध संज्ञेय व अजमानतीय होता है, जिसका विचारण किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकता है।
3- धारा 325 भा0द0वि0 का अपराध संज्ञेय व जमानतीय होता है, जिसका विचारण किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकता है।
4- धारा 326 भा0द0वि0 का अपराध संज्ञेय व अजामनतीय होता है, जिसका विचारण प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है।
चोट अथवा घाव के प्रकारः- चोट निम्न प्रकार के होते हैः-
- कन्ट्यूजन (CONTUTION)- इस प्रकार की चोट कुन्दालय (Hard And Blunt Object) द्वारा आती है। इसमें चोट तत्काल लाल रंग तत्पश्चात नीला हो जाता है तथा सूजन (Swelling) भी हो जाती है।
- एब्रेजन (Abrasion)- इस प्रकार की चोट कुन्दालय (Hard And Blunt Object) द्वारा आती है। इसे चोट खरास (खरोंच) भी कहते हैं। इस प्रकार की चोत में त्वचा क्षतिग्रस्त होती है।
- कटा घाव (Incised Wound)- इस प्रकार की चोट तेज धारदार वस्तु से आती है। इसमें चोट के दोनों किनारे साफ कटे होते हैं तथा काफी मात्रा में खून बहने की सम्भावना रहती है। इस प्रकार की चोट में विवेचक को धारा 324 भा0द0वि0 का समावेश करना चाहिये।
- आरपार घाव (Perforated Wound)- इस प्रकार की चोट नुकीले हथियार अथवा गोली से आ सकता है। इसमें घाव शरीर के जिस हिस्से में होते हैं, वहाँ आरपार घाव होता है।
- घोंपा हुआ घाव (Punctured Wound)- इस प्रकार की चोट चाकू, भाला आदि शस्त्र से आता है।
- हड्डी टूटना (Fractured Wound)- इस प्रकार की चोट में हड्डी अथवा हड्डी का जोड़ टूटा हुआ होता है। इस प्रकार के मामलों में विवेचक को धारा 325 भा0द0वि0 का समावेश करना चाहिये।
- जलना (Burn Injury)- इस प्रकार की चोट आग से जलने के कारण आती है।
- बिजली से जलना (Electrical Injury)- इस प्रकार की चोट बिजली (Current) का शरीर में प्रवाह हो जाने के कारण आती है।
मारपीट की सूचना प्राप्त होने पर विवेचक को घटनास्थल पर जाकर निम्न कार्यवाही यथाशीघ्र पूर्ण करनी चाहियेः–
- मारपीट की सूचना प्राप्त होते ही यदि तद्समय मारपीट जारी रहने की सूचना हो तो सर्वप्रथम निकटतम चौकी/पिकेट से पर्याप्त संख्या में पुलिस बल को घटनास्थल पर स्थिति को नियन्त्रित करने हेतु भेजना चाहिये, साथ ही सम्बन्धित थाना प्रभारी को पर्याप्त पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुँचना चाहिये तथा स्थिति को नियन्त्रण में करते हुये घायलों को यथाशीघ्र दवा-उपचार हेतु पास के चिकित्सालय में भेजना चाहिये।
- घटनास्थल पर या थाने में आये घायलों को सर्वप्रथम एक आरक्षी के साथ चिकित्सीय परीक्षण/उपचार हेतु निकट के स्वास्थ्य केन्द्र/अस्पताल में भेजकर उनका उपचार/चिकित्सीय परीक्षण कराना चाहिये।
- विवेचक को घटनास्थल पर जाकर मारपीट की घटना के कारणों का पता लगाना चाहिये तथा पूछताछ के आधार पर संदिग्ध व्यक्तियों को चिन्हित करना चाहिये तथा उनके गहनता से पूछताछ करनी चाहिये।
- होने पर विवेचक/थाना प्रभारी को सर्वप्रथम घटनास्थल पर जाकर घटनास्थल को यलो टेप के माध्यम से सुरक्षित करना चाहिये तथा डाग स्क्वाड व फील्ड यूनिट को भी बुलाना चाहिये।
- घटनास्थल का निरीक्षण बारीकी से करना चाहिये तथा अपराधियों के सम्बन्ध में साक्ष्य यथा फिंगर प्रिन्ट, फुट प्रिन्ट, मोबाईल, सिगरेट के टुकड़े, रक्तरंजित वस्तुएँ, कपड़ों के टुकड़े, मारपीट के दौरान अपराधियों के पास से गिरी मोबाईल आदि एकत्र करते हुये उनका परीक्षण कराना चाहिये।
- घटनास्थल का बीटीएस/टावर सीडीआर निकलवाना चाहिये तथा संदिग्ध मोबाईल नम्बरों को चिन्हित करते हुये संदिग्ध व्यक्तियों से पूछताछ करनी चाहिये।
- घटनास्थल के पास स्थित दुकानदारों/निवासियों से पूछताछ करनी चाहिये तथा घटना के सम्बन्ध में जानकारी कर महत्वपूर्ण जानकारियों को अपने केस डायरी में उल्लेख करना चाहिये।
- यदि घटना में मोबाईल फोन भी अभियुक्तों द्वारा ले जाया गया है, तो उसका नम्बर प्राप्त कर छोटे-छोटे अन्तराल पर लगातार ब्लैंक मैसेज भेजना चाहिये।
- अभियुक्तों के आने-जाने वाले रास्ते तथा टोल-प्लाजा सहित विभिन्न स्थानों पर लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज का अवलोकन कर अभियुक्तों की पहचान करने का प्रयास करना चाहिये।
- संदिग्ध व्यक्तियों तथा चश्मदीद साक्षियों का पूर्ण विवरण जैसे- नाम,पिता का नाम, गाँव, थाना, जिला, मोबाईल नम्बर प्राप्त कर केस डायरी में स्पष्ट रूप से उल्लेख करना चाहिये।
- अभियुक्तों के अज्ञात होने पर उनका हुलिया तथा सीसीटीवी फुटेज प्राप्त कर जनपद के अन्दर तथा आस-पास के जनपदों के सभी थानों, डीसीआरबी के माध्यम से मिलान कराकर अभियुक्तों की पहचान सुनिश्चित करना चाहिये। (विश्वविद्यालय/कालेजों में मारपीट होने पर तथा एकतरफा प्रेम प्रसंग के मामले में तेजाब फेंकने वाले अभियुक्त प्रायः अज्ञात होते हैं।)
- अभियुक्तों की गिरफ्तारी के पश्चात उनके निशानदेही पर उनके कब्जे से शस्त्र, तेजाब की बोतल जो घटना में उपयोग किया गया है आदि साक्षियों के समक्ष बरामद कर फर्द (धारा 27 साक्ष्य अधिनियम) तैयार करना चाहिये।
- संदिग्ध अभियुक्तों का मोबाईल नम्बर प्राप्त कर घटनास्थल के बीटीएस/टावर सीडीआर से मिलान करें तथा ग्रुप कालिंग का भी एनालिसिस कर चिन्हित करें।
प्रथम सूचना रिपोर्ट
प्रथम सूचना रिपोर्ट धारा 154 दण्ड प्रक्रिया संहिता में वर्णित प्रावधानों के अनुरूप दर्ज होती है।
1- इसमें वर्णित है कि संज्ञेय अपराध की सूचना जब थानाध्यक्ष को मौखिक मिलती है, तो उसके द्वारा या निर्देशन पर लेखबद्ध की जायेगी और सूचनादाता को पढ़कर सुनाई जायेगी तथा उसके हस्ताक्षर कराये जायेंगे। यदि लिखित सूचना मिलती है तो भी सूचनाकर्ता के द्वारा हस्ताक्षर बनाया जायेगा तथा विहित प्रारूप में लेखबद्ध की जायेगी।
2- प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति सूचनाकर्ता को निःशुल्क दी जायेगी।
3- यदि कोई व्यक्ति किसी पुलिस थाने के थानाध्यक्ष द्वारा संज्ञेय अपराध की सूचना को अभिलिखित करने से इनकार करने से व्यथित है तो वह लिखित रूप से डाक द्वारा सूचना पुलिस अधीक्षक को भेज सकता है। पुलिस अधीक्षक को यदि यह समाधान हो जाता है कि यह सूचना संज्ञेय अपराध से सम्बन्धित है तो स्वयं मामले का अन्वेषण करेंगें या अपने अधीनस्थ किसी पुलिस अधिकारी द्वारा अन्वेषण किये जाने का आदेश देंगे। उस अधिकारी को उस अपराध के सम्बन्ध में पुलिस थाने के भारसाधक की सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
नमूना तहरीर (काल्पनिक)
नमूना एफआईआर (चिक-काल्पनिक)
नमूना कायमी (रोजनामचा आम में उल्लेख मुकदमा)
र0नं0-10/समय-14.00
कायमी मु0अ0सं0-105/14
धारा 323,325,341 भा0द0वि0
इस समय श्री रमेश पुत्र राजाराम निवासी रामपुर थाना हलिया जनपद भदोही उत्तर प्रदेश उपस्थित थाना आकर एक किता प्रार्थना पत्र हिन्दी, लिखित व दस्खती खुद का प्रकट करते हुये बाबत दिनाँक-15-07-2014 को दिन में करीब 12.00 बजे घर से सामान लेने लक्ष्मणपुर बाजार जाते समय रास्ते में भरतपुर के पास ननकी तिराहे पर चार अज्ञात लोगों द्वारा रास्ता रोककर घेरकर हाकी, बल्लम व चैन से बुरी तरह मारने-पीटने जिससे कई जगह चोट आने व बाँया हाथ फ्रैक्चर हो जाने व मारपीट करने वालों को देखकर पहचान लिये जाने का दाखिल किया। दाखिला तहरीर के आधार पर चिक दस्तन्दाजी सीसीटीएनएस कम्प्यूटर पर बोल-बोल कर किता कराकर मु0अ0सं0- 105/14 धारा 323,325,341 भा0द0वि0 दि0घ0-15-07-2014 को दोपहर समय 12.00 बजे दि0सू0-15-07-2014 समय 14.00 बजे घटनास्थल ननकी तिराहा बहद् ग्राम भरतपुर बफासला 07 कि0मी0 उत्तर-पूरब बमुद्दैयत श्री रमेश पुत्र राजाराम निवासी रामपुर थाना हलिया जनपद भदोही बनाम अज्ञात 04 नफर अभियुक्त बतफ्तीश प्रभारी निरीक्षक श्री रामभरोसे सिंह थाना हलिया पंजीकृत किया गया। तकमीला सम्बन्धित अभिलेखों में हो रहा है डेली जरायम रवाना होगा। घटना/अभियोग पंजीकरण की सूचना द्वारा आर0टी0 सेट अफसरान बाला को दिया जा रहा है। नकल चिक, नकल रपट वास्ते विवेचना निरीक्षक श्री रामभरोसे सिंह को सुपुर्द किया गया। निरीक्षक श्री रामभरोसे सिंह मय हमराही कां0 कन्हैया यादव, कां0 रामफल यादव को बाद बुलाने अन्दर मालगृह से एक-एक जरब इन्सास रायफल क्रमशः नम्बर —…………..- व —……….- मय 60-60 कारतूस दिलाकर मालगृह का ताला बन्द ठीक सन्तरी को इत्मिनान कराकर रवाना मौका हुये। एक जरब पिस्टल व 30 कारतूस पास एसएसआई श्री रामभरोसे सिंह बदस्तूर है। चाभी मालखाना पास एचएम बदस्तूर है।
प्र0सू0रि0 दर्ज होने के बाद की प्रक्रिया
नकल चिकः-
जब विवेचक को विवेचना हेतु प्र0सू0रि0 व उससे सम्बन्धित जी0डी0 की नकल (कायमी) मिलती है तो विवेचक केस डायरी में प्र0सू0रि0 व जी0डी0 की नकल करता है। विवेचक को स्पष्ट रूप से केस डायरी में लिखना चाहिये कि विवेचना हेतु प्र0सू0रि0 व जी0डी0 की नकल कहाँ पर, किसके द्वारा, किस समय उसे प्राप्त हुई तथा किस समय वह विवेचना शुरू किया। घटनास्थल पर प्रस्थान करने, पहुँचने व अन्य कार्यवाही का समय भी केस डायरी में अवश्य लिखना चाहिये। प्र0सू0रि0 के नकल का नमूना निम्नवत् हैः-
नमूना नकल चिक (काल्पनिक)
नमूना नकल रपट (काल्पनिक)
प्र0सू0रि0 दर्ज होने के बाद निम्नानुसार आवश्यक कार्यवाही करना चाहियेः-
1- नकल चिक, नकल रपट का अवलोकन कर केस डायरी में नकल करना तथा लेखक प्र0सू0रि0 का बयान दर्ज करना (यदि विवेचक को प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति क्षेत्र में प्राप्त हुई है तो लेखक का बयान बाद में दर्ज करना उचित होगा)।
2- बयानवादी व निरीक्षण घटनास्थलः- मारपीट अथवा तेजाब फेंकने की घटना होने पर सूचना के पश्चात विवेचक द्वारा वादी से गहनता से उसकी भावनाओँ का ध्यान रखते हुये सान्तवना देकर पूछताछ कर बयान दर्ज करना चाहिये तथा यथासम्भव उक्त बयान की (161 सीआरपीसी) वीडियो रिकार्डिंग कर डीवीडी बनानी चाहिये। यदि वादी मुकदमा घटनास्थल पर नहीं है बल्कि थाने पर अथवा अन्यत्र मिला है तो उसे साथ लेकर घटनास्थल पर अवश्य जाना चाहिये। मारपीट की घटना में कभी-कभी अपराधियों द्वारा हत्या का प्रयास अथवा हत्या भी कारित कर दिया जाता है, इस परिस्थिति में यदि घटनास्थल सुरक्षित नहीं किया गया है तो यलो टेप से यथाशीघ्र घटनास्थल को सुरक्षित करना चाहिये। घटनास्थल पर यदि कोई प्रत्यक्षदर्शी चक्षु साक्षी है तो वादी तथा साक्षी के निशानदेही पर घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करना चाहिये तथा सर्वप्रथम घटनास्थल का विभिन्न कोण से फोटोग्राफी/वीडियोग्राफी करानी चाहिये। यदि घटनास्थल पर कोई घायल व्यक्ति पड़ा है, तो उसे तत्काल चिकित्सकीय परीक्षण एवं इलाज हेतु अस्पताल भेजना चाहिये तथा धारा 32 साक्ष्य अधिनियम में वर्णित प्रावधानों के अनुरूप “मृत्यु पूर्व कथन” अंकित कराना चाहिये। फोटोग्राफ को केस डायरी तथा एस0आर0 फाईल में अवश्य लगाना चाहिये। घटनास्थल का निरीक्षण अत्यन्त ही बारीकी से घटनास्थल को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट कर (जोन मेथड से) निरीक्षण करना चाहिये तथा घटनास्थल से प्राप्त भौतिक साक्ष्यों का संकलन जैसे खूनालूद मिट्टी, खोखा कारतूस, फुट प्रिन्ट, फिंगर प्रिन्ट, बाल, शस्त्र आदि फील्ड यूनिट की सहायता से कम से कम दो स्वतन्त्र जन साक्षियों की मौजूदगी में करना चाहिये तथा भौतिक साक्ष्य संकलन का फर्द मौके पर तैयार कर साक्षीगण के हस्ताक्षर फर्द पर बनवाया जाना चाहिये। भौतिक साक्ष्य संकलन के समय “डीजी परिपत्र संख्या-33/2018” में दिये गये निर्देशों के अनुसार सावधानी रखी जानी चाहिये। घटनास्थल निरीक्षण के समय वादी की निशानदेही पर घटनास्थल की नक्शानजरी लैण्डमार्क तथा दूरी प्रदर्शित करते हुये मीटर व सेन्टीमीटर के पैमाने में दर्ज कर बनाना चाहिये।
नमूना बयान वादी
घटनास्थल को सुरक्षित रखने हेतु की जाने वाली कार्यवाहीः-
(चोरी की घटना में हत्या अथवा हत्या का प्रयास के मामले में)
1- घटना यदि कमरे/दुकान की है, तो दरवाजे पर एक आरक्षी की डियूटी लगायी जाये।
2- घटनास्थल यदि खुले स्थान का है तो उस स्थान को रस्सी या येलो टेप से घेर देना चाहिये।
3- घटनास्थल पर संवेदना व्यक्त करने वाले,उत्सुकतावश घटनास्थल देखने वाले, वादी के घरवालों और पुलिसकर्मियों से घटनास्थल की सुरक्षा करनी चाहिये और किसी वस्तु को छूने नहीं देना चाहिये।
घटनास्थल से क्या-क्या मिल सकता हैः- घटनास्थल से रक्तरंजित वस्तुएँ, फिंगर प्रिन्ट्स, फुट प्रिन्टस, कारतूस के खोखे, बाल, कांच के टुकड़े, शस्त्र, ईंट-पत्थर के टुकड़े तथा अपराधी द्वारा छोड़ी गयी अन्य वस्तु जैसे सिगरेट का टुकड़ा, रूमाल आदि।
घटनास्थल के निरीक्षण की प्रक्रियाः- घटनास्थल का निरीक्षण फील्ड यूनिट की सहायता से करना चाहिये तथा डाग स्क्वाड का प्रयोग अवश्य ही करना चाहिये। घटनास्थल का निरीक्षण करते समय कोई जगह छूटनी नहीं चाहिये। घटनास्थल का निरीक्षण बारीकी से घटनास्थल को छोटे-छोटे भागों में बाँट कर किया जा सकता है। अभियुक्तों के आने-जाने के मार्ग पर लगे समस्त सीसीटीवी कैमरे की रिकार्डिंग गहनता से चेक करनी चाहिये।
घटनास्थल से भौतिक साक्ष्य एकत्र करने का तरीकाः-
1- प्रत्येक भौतिक पदार्थ को फर्द लिख कर कब्जे में लिया जाये व पदार्थ सील मोहर किया जाये।
2- रक्त व रक्त रंजित वस्तुओं को सुखा कर सील किया जाये।
3- किसी भौतिक पदार्थ को उठाते समय रबर के दस्ताने पहने जायें।
4- सील मोहर करने से पूर्व पदार्थों को रूई या कागज में लपेटकर कपड़े में सील मोहर किया जाये।
5- तरल पदार्थ को बोतल या शीशी में रख कर कब्जे में लिया जाये व बोतल या शीशी को किसी गत्ते के डिब्बे में रखकर सील मोहर किया जाये।
6- सील मोहर पैकेट पर मुकदमा अपराध नम्बर, धारा व थाने का नाम, दिनांक आदि लिखा जाये।
भौतिक साक्ष्य संकलन के फर्द का नमूना निम्नवत् हैः-
नमूना फर्दः-
मुकदमा अपराध संख्या-105/18 धारा 323,325,341 भादवि थाना-हलिया जिला-भदोही से सम्बन्धित घटनास्थल- घर रमेश पुत्र राजाराम बहद् ग्राम रामपुर से खूनालूद मिट्टी व सादी मिट्टी अथवा खोखा कारतूस अथवा अन्य भौतिक साक्ष्य कब्जा पुलिस में लेने के सम्बन्ध में फर्द—
आज दिनांक-………………………. को समक्ष गवाहान 1- रमेश पुत्र दिनेश निवासी- ग्राम-……….. थाना-…………. जिला-……………….. 2- कमलेश पुत्र विमलेश निवासी- ग्राम- …… थाना-…………………. जिला-…………………… के मु0अ0सं0-105/18 धारा-323,325,341 भादवि थाना-हलिया जिला-भदोही से सम्बन्धित घटनास्थल जो ग्राम-भरतपुर थाना-हलिया जनपद-भदोही में ननकी तिराहा के पास स्थित है, से खूनालूद मिट्टी तथा सादी मिट्टी (अथवा एक अदद खोखा कारतूस 12 बोर पेंदे पर KF लिखा व रंग लाल जिससे बारूद की गंध आ रही है) अथवा अन्य भौतिक साक्ष्य कब्जा पुलिस में लेकर अलग-अलग डिब्बों में रखकर डिब्बों को अलग-अलग कपड़ों में सिलकर, सर्वमुहर किया गया तथा उनपर क्रमशः A1 व A2 नम्बर अंकित किया गया। नमूना मुहर तैयार किया गया। मौके पर फर्द लिखकर पढ़कर सुनाकर साक्षीगण क हस्ताक्षर बनवाये जा रहे हैं।
हस्ताक्षर साक्षी- हस्ताक्षर विवेचक
1-
2-
नक्शा नजरी
विवेचना हेतु कार्ययोजना बनाना
शव को पोस्टमार्टम हेतु भेजने के पश्चात विवेचना हेतु कार्ययोजना अवश्य बनानी चाहिये तथा क्षेत्राधिकारी से अनुमोदित कराना चाहिये। विवेचना की कार्ययोजना को तैयार करने में निम्न बिन्दु ध्यान में अवश्य रखना चाहिये।
1- किन-किन गवाहों के कथन अंकित करने हैं।
2- किन-किन संदिग्ध लोगों/अभियुक्तों से पूछताछ करनी है।
3- किस विशेषज्ञ का अभिमत प्राप्त करना है।
4- किस व्यक्ति/अभियुक्त के घर की तलाशी लेनी है।
विवेचक को मुख्य रूप से विवेचना के दौरान निम्न साक्षियों का बयान यथासम्भव शीघ्र दर्ज करना चाहिये।
साक्षी के प्रकारः- 1- प्रत्यक्षदर्शी साक्षी
2- परिस्थितिजन्य साक्षी
3- मोटिव के साक्षी
1- प्रत्यक्षदर्शी साक्षीः-
प्रत्यक्षदर्शी साक्षी वे साक्षी हैं कि यदि घटना किसी देखे जा सकने वाले तथ्य के बारे में है, तो वह ऐसे साक्षी का ही साक्ष्य होगा जो कहता है कि उसने उसे देखा है, यदि वह किसी सुने जा सकने वाले तथ्य के बारे में है तो वह ऐसे साक्षी का ही साक्ष्य होगा जो कहता है कि उसने उसे सुना। यदि वह किसी ऐसे तथ्य के बारे में है जिसका किसी अन्य इन्द्रीय द्वारा बोध हो सकता था तो वह ऐसे साक्षी का ही साक्ष्य होगा जो कहता है कि उसने उसका बोध उस इन्द्रीय द्वारा किया।
2- परिस्थितिजन्य साक्षीः-
परिस्थितिजन्य साक्षी वे साक्षी हैं, जो घटना को होते हुये अपनी आँखों से घटनास्थल पर मौजूद रहकर नहीं देखें हैं, परन्तु ऐसी परिस्थितियों के साक्षी हैं, जो अपराध घटित होने के सम्बन्ध में साक्ष्य के रूप में इशारा करती हैं। (भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-156 के अनुसार-साक्षी झूठ बोल सकता लेकिन परिस्थितियाँ नहीं)
3- मोटिव के साक्षीः-
मोटिव के साक्षी वे साक्षी हैं, जो घटना के कारण के सम्बन्ध में जानकारी रखते हैं तथा बताते हैं।
(हेतुक व हेतु के लिये क्रमशः भा0सा0अधि0 की धारा 07 व 08 देखें)।
161 सीआरपीसी व 164 सीआरपीसी का बयान क्या है और कैसे दर्ज किया जाता है ?-
161 सीआरपीसी का बयानः-
1- कोई पुलिस अधिकारी जो दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन विवेचना कर रहा है, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित किसी व्यक्ति की मौखिक परीक्षा कर सकता है, परन्तु यदि किसी ऐसी स्त्री का कथन लिया जाना हो जिसके साथ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354, 354क, 354ख, 354ग, 354घ, 376, 376क, 376ख, 376ग, 376घ, 376ड़ या धारा 509 के अपराध किये जाने या प्रयत्न किये जाने का आरोप है तो उसका कथन किसी महिला पुलिस अधिकारी द्वारा अथवा उपस्थिति में अभिलिखित की जायेगी तथा वीडियो रिकार्डिंग भी की जायेगी।
2- ऐसा व्यक्ति जिससे विवेचक पूछताछ कर रहा है, सभी प्रश्नों का सही उत्तर देने के लिये बाध्य होगा, अलावा उन प्रश्नों के जिनके उत्तर की प्रवृत्ति उसे आपराधिक आरोप या दण्ड की आशंका में डालने की हो।
3- पुलिस अधिकारी इस धारा के अधीन मौखिक परीक्षा के दौरान उसके समक्ष किये गये किसी भी कथन को लेखबद्ध कर सकता है और यदि लेखबद्ध करता है तो प्रत्येक ऐसे व्यक्ति के कथन का पृथक और सही अभिलेख बनायेगा (धारा 161 सीआरपीसी की उपधारा 3 के अधीन किये गये किसी कथन का अभिलेखन आडियो/वीडियो व इलेक्ट्रानिक साधनों से भी किया जा सकेगा)।
164 सीआरपीसी का बयानः- इस धारा में अभियुक्त की संस्वीकृति व गवाहों के कथन मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किये जाते हैं, जिसका पूर्ण विवरण इस प्रकार है।
1- कोई महानगर मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट चाहे उसे मामले में अधिकारिता हो या ना हो अन्वेषण के दौरान जाँच या विचारण प्रारम्भ होने से पूर्व किसी समय की गयी संस्वीकृति या कथन को अभिलिखित कर सकता है। धारा 164 (1) सीआरपीसी के अधीन की गयी संस्वीकृति या कथन किसी अपराध के अभियुक्त के अधिवक्ता की उपस्थिति में श्रव्य, दृश्य, या इलेक्ट्रानिक साधन के द्वारा भी अभिलिखित की जा सकेगी।
2- मजिस्ट्रेट किसी ऐसी संस्तुति को लिखने से पूर्व संस्वीकृति करने वाले व्यक्ति को समझायेगा कि वह ऐसी संस्वीकृति करने के लिये आबद्ध नहीं है और यदि वह उसे करेगा तो उसके विरूद्ध साक्ष्य में उपयोग में लाई जा सकती है और मजिस्ट्रेट उसे तब तक नहीं लिखेगा जब तक उसे करने वाले व्यक्ति से प्रश्न करने पर यह विश्वास करने का कारण न हो कि वह स्वेच्छा से की जा रही है।
3- संस्वीकृति करने से पूर्व यदि मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होने वाला व्यक्ति यह कहता है कि वह संस्वीकृति नहीं करना चाहता तो उस व्यक्ति को पुलिस अभिरक्षा में देने का आदेश नहीं किया जायेगा।
4- ऐसी संस्वीकृति में किसी अभियुक्त व्यक्ति की परीक्षा करने में धारा 281 सीआरपीसी में उपबन्धित रीति से अभिलिखित की जायेगी और संस्वीकृति करने वाले व्यक्ति द्वारा उस पर हस्ताक्षर किये जायेंगे और मजिस्ट्रेट ऐसे अभिलेख नीचे निम्नलिखित भाव का ज्ञापन लिखेगाः-
“मैंने (अभियुक्त का नाम) को यह समझा दिया है कि वह संस्वीकृति करने के लिये आबद्ध है और यदि वह ऐसा करता है तो कोई संस्वीकृति, जो वह करेगा, उसके विरूद्ध साक्ष्य में उपयोग में लाई जा सकती है और मुझे विश्वास है कि यह संस्वीकृति स्वेच्छा से की गयी है। यह मेरी उपस्थिति में मेरे सुनने में लिखी गई है और जिस व्यक्ति ने यह संस्वीकृति की है उसको पढ़ कर सुना दी गयी है और उसने उसका सही होना स्वीकार किया है और उसके द्वारा किये गये कथन का पूरा व सही वृतान्त इसमें है”।
हस्ताक्षर मजिस्ट्रेट
5- उपधारा (1) में किया गया संस्वीकृति से भिन्न कोई कथन साक्ष्य अभिलिखित करने के लिये इसमें इसके बाद उपबन्धित ऐसी रीति से अभिलिखित किया जायेगा, जो मजिस्ट्रेट की राय में उस मामले की परिस्थितियों में सर्वाधिक उपयुक्त हो और मजिस्ट्रेट को उस व्यक्ति को शपथ दिलाने की शक्ति होगी जिसका कथन इस प्रकार अभिलिखित किया जाना है।
5.क (क)- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354, 354क, 354ख, 354ग, 354घ, 376 की उपधारा (1) या उपधारा (2), 376क, 376ख, 376ग, 376घ, 376ड़ या धारा 509 के अधीन दण्डनीय मामलों में न्यायिक मजिस्ट्रेट उपधारा 5 में विहित रीति से उस व्यक्ति का कथन अंकित करेगा जिसके विरूद्ध ऐसा अपराध किया गया है जैसे ही अपराध का किया जाना पुलिस की जानकारी में लाया जाता है। परन्तु यदि कथन करने वाला व्यक्ति अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से निःशक्त है तो मजिस्ट्रेट कथन लिखने में किसी द्विभाषिये या विशेष प्रबोधक की सहायता लेगा। परन्तु यह और कि यदि कथन करने वाला व्यक्ति अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से निःशक्त है तो मजिस्ट्रेट किसी द्विभाषिये या विशेष प्रबोधक की सहायता से उस व्यक्ति द्वारा दिये गये कथन की वीडियोग्राफी तैयार की जायेगी।
(ख)- अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से निःशक्त किसी व्यक्ति के उपधारा (क) अधीन अभिलिखित कथन भारतीय साक्ष्य अधिनियम 137 में यथाविर्निदिष्ट मुख्य परीक्षा के स्थान पर एक कथन माना जायेगा और ऐसा कथन करने वाले की, विचारण के समय उसको अभिलिखित करने की आवश्यकता के बिना, ऐसे कथन पर प्रतिपरीक्षा की जा सकेगी। (संशोधन 2013)
6- इस धारा के अधीन अभिलिखित किये गये कथन या संस्वीकृति को अभिलिखित करने वाले मजिस्ट्रेट, उसे उस मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा जिसके द्वारा मामले की जाँच या विचारण किया जाना है।
नमूना बयान गवाह
धारा 161 दण्ड प्रक्रिया संहिता व 164 दण्ड प्रक्रिया संहिता में अन्तरः-
क्र0सं0 | धारा 161 दण्ड प्रक्रिया संहिता | 164 दण्ड प्रक्रिया संहिता |
1 | विवेचक द्वारा बयान दर्ज किया जाता है। | महानगर मजिस्ट्रेट अथवा न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा बयान दर्ज किया जाता है। |
2 | बयानकर्ता से हस्ताक्षर नहीं कराया जाता है। | बयानकर्ता का हस्ताक्षर कराया जाता है। |
3 | साक्ष्य के रूप में उपयोग में नहीं लाया जा सकता है। (धारा 27 साक्ष्य अधिनियम के तथ्यों को छोड़कर) | साक्ष्य के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है। |
चश्मदीद साक्षी/परिस्थितिजन्य साक्षी का कथन लेखबद्ध करनाः-
विवेचक को चक्षुदर्शी साक्षियों, मोटिव के साक्षियों और परिस्थितिजन्य साक्षियों की तलाश कर उनके कथन घटना के सम्बन्ध में अंकित करने चाहिये। गवाहों के बयान में लाभकारी बात को नोट करना चाहिये, यदि कोई बात गवाह न बता पा रहा हो तो प्रश्न करके पूछ लेना चाहिये।
घटना से जुड़े व्यक्तियों का सीडीआर/बीटीएस प्राप्त करनाः-
घटना से सम्बन्धित व्यक्तियों के मोबाइल फोन नम्बर को प्राप्त कर उनका सीडीआर कम से कम छः माह का प्राप्त कर विभिन्न दृष्टिकोण से एनालिसिस कर पूछताछ के समय सीडीआर का उपयोग करना साथ ही घटनास्थल के तथा घटनास्थल के तरफ आने-जाने वाले सभी रास्तों का टावर सीडीआर (बीटीएस) प्राप्त कर अभियुक्तों के आने-जाने तथा उपस्थिति व गिरफ्तारी के सम्बन्ध में उपयोग करना चाहिये।
अभियुक्तों की गिरफ्तारी हेतु मुखबिर लगाना तथा गिरफ्तारी हेतु फोन नम्बरों को समानान्तर लाईन (लिस्निंग) पर सुनकर गिरफ्तारी का प्रयास करनाः- विवेचक को अपराध से सम्बन्धित अभियुक्तों की गिरफ्तारी हेतु तुरन्त प्रयास करना चाहिये, यदि अभियुक्त फरार हों तो उनका विवरण कन्ट्रोल रूम को देना चाहिये जिससे अभियुक्तों की खोज व्यापक स्तर पर करायी जा सके। अभियुक्त की गिरफ्तारी हेतु समानान्तर लाईन (लिस्निंग) पर महत्वपूर्ण नम्बरों को सुनना भी काफी लाभदायक होता है। अभियुक्त की गिरफ्तारी जल्दी होने से कुछ महत्पूर्ण साक्ष्य प्राप्त हो जाते हैं।
नमूना सीडीआर
मोटिव को सत्यापित करनाः- मारपीट की घटना कभी-कभी गम्भीर रूप ले लेती है जिसमें तेजाब फेंकने से लेकर हत्या जैसी गम्भीर घटना हो जाती है, जो एक गम्भीर प्रकृति का अपराध है, जिसके अभियोजन में मोटिव का काफी महत्व होता है। विवेचक को चाहिये कि मारपीट/हत्या के कारण के सम्बन्ध में भी साक्ष्य मौखिक/दस्तावेजी का संकलन कर केस डायरी में अंकित करें। जैसे- यदि भूमि सम्बन्धी विवाद के कारण मारपीट/हत्या हुयी है तो सम्भव है कि सिविल मुकदमों से सम्बन्धित दस्तावेजी साक्ष्य मिल जायें। यदि हत्या, लूट अथवा अन्य कारण से होती है तो कारण दौरान विवेचना विवेचक द्वारा अवश्य ही प्रमाणित होना चाहिये।
मेडिकल रिपोर्टः- यदि घटना में कोई व्यक्ति घायल है तो उसका इलाज, चिकित्सकीय परीक्षण तथा आवश्यकतानुसार एक्स-रे, अल्ट्रासाऊन्ड आदि कराना चाहिये तथा रिपोर्ट का उल्लेख केस डायरी में करते हुये चिकित्सक से विस्तृत चोटों के प्रकार, समय व किस प्रकार के हथियार से चोटें आयी हैं पूछताछ कर केस डायरी में दर्ज करना चाहिये।
माल परीक्षण हेतु एफएसएल भेजे जाने हेतु प्रक्रिया
विधि विज्ञान प्रयोगशाला में परीक्षण हेतु भेजे जाने वाले प्रदर्शों के सम्बन्ध में क्या-क्या प्रश्न पूछना चाहियेः- विधि विज्ञान प्रयोगशाला में परीक्षण हेतु जो प्रदर्श विवेचक द्वारा भेजे जाते हैं, उनके सम्बन्ध में निम्न प्रश्न पूछना लाभदायक होता हैः-
1- घटनास्थल पर प्राप्त खोखा कारतूस तथा मृतक/घायल के शरीर से प्राप्त बुलेट क्या एक ही कारतूस के हैं ?
2- अभियुक्त के निशानदेही पर बरामद आग्नेयास्त्र से ही घटनास्थल पर प्राप्त खोखा कारतूस को फायर किया गया था ?
3- घटनास्थल पर प्राप्त खूनालूद मिट्टी (A1) तथा मृतक/घायल के शरीर से प्राप्त पहने हुये खूनालूद वस्त्र पर मानव रक्त है ? यदि मानव रक्त है तो क्या एक ही ग्रुप का है ?
4- मृतक/घायल के शरीर से प्राप्त पहने हुये खूनालूद वस्त्र पर बने छिद्र पर बारूद के कण मौजूद हैं?
अभियुक्त से पूछताछ में वैज्ञानिक साधनों का प्रयोग किया जायेः- वर्तमान समय में अभियुक्तों व संदिग्ध लोगों से पूछताछ करने में वैज्ञानिक साधनों का प्रयोग किया जा रहा है। इनके द्वारा परीक्षण करके यह पता लग सकता है कि अभियुक्त/संदिग्ध सच बोल रहा है या झूठ बोल रहा है। ये साधन निम्न हैः-
1- पालीग्राफी (झूठ बोलने का पता लगाना)- पालीग्राफी एक वैज्ञानिक तकनीक है इस टेस्ट में संदिग्ध अभियुक्त/संदिग्ध के पूछताछ के समय शारीरिक परिवर्तनों के आधार पर सच/झूठ बोलने का पता लगाया जाता है। यह सुविधा केन्द्रीय विधि विज्ञान प्रयोगशाला नई दिल्ली में उपलब्ध है, जहाँ पालीग्राफ के लिये निम्न प्रक्रिया अपनायी जाती हैः-
- विवेचक अपराध का संक्षेप में वह बिन्दु उपलब्ध कराता है जिसपर अभियुक्त/संदिग्ध व्यक्ति से स्पष्टीकरण लेना है।
- विशेषज्ञ उसके आधार पर प्रश्नावली तैयार करता है।
- परीक्षण के पूर्व विशेषज्ञ अभियुक्त को बताता है कि वह चाहे तो इस टेस्ट से इनकार कर सकता है।
पालीग्राफी टेस्ट
2- फोरेन्सिक एकास्टिक (अभियुक्त की आवाज की पहचान करना)- अपहरण, दबा कर पैसा वसूलने, धमकी, अश्लील उत्पीड़न आदि में फोन का उपयोग बढ़ रहा है। ऐसे मामलों में साऊण्ड स्पैक्ट्रोग्राफ का प्रयोग कर बोलने वाले की पहचान नमूने से मिलान कर किया जा सकता है। यह सुविधा केन्द्रीय विधि विज्ञान प्रयोगशाला नई दिल्ली में उपलब्ध है।
फोरेन्सिक एकास्टिक
3- ब्रेन मैपिंगः- डाक्टर लारेन्स फारवेल नामक अमेरिकी मस्तिष्क विशेषज्ञ ने ब्रेन फिल्म प्रिन्टिंग नामक एक प्रक्रिया विकसित की है। अभियुक्त को इस प्रक्रिया में एक हेलमेट जैसा उपकरण पहनाया जाता है, जिसमें ईसीजी के 16 तार जुड़े होते हैं। सम्बन्धित व्यक्ति के मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों में न्यूरान की गतिविधि स्क्रीन पर देखी जाती है।
ब्रेन मैपिंग
4- नारको टेस्टः- यह मनोवैज्ञानिक चिकित्सकीय प्रणाली है। इसमें एनेस्थिसिया के डाक्टर व एक मनोवैज्ञानिक की आवश्यकता होती है। अभियुक्त के नस में सोडियम पेन्टाथाल व एनिटाल नामक दवा का इंजेक्शन देकर उसे अर्द्धसुप्तावस्था में किया जाता है। तत्पश्चात अभियुक्त से पूछताछ की जाती है। यह प्रक्रिया अत्यन्त कुख्यात एवं राष्ट्रविरोधी अपराधियों के विरूद्ध ही प्रयोग में लाया जा सकता है। क्योंकि यह विधिक दृष्टिकोण से मौलिक अधिकार के विपरित है।
नारको टेस्ट
5- डी0एन0ए0 टेस्टः- अभियुक्त की डी0एन0ए0 फिंगर प्रिन्टिंग अत्याधुनिक तकनीक है तथा इसका परिणाम 100 प्रतिशत सही आता है। इसकी सहायता से पितृत्व सिद्ध करने, हत्या, बलात्कार एवं अन्य मामलों में सही अपराधियों तक पहुँचा जा सकता है क्योंकि हर व्यक्ति के डी0एन0ए0 का अलग सिक्वेन्स होता है।
नमूना डीएनए
अभियुक्त की गिरफ्तार/गैरहाजिरी के सम्बन्ध में कार्यवाही
अभियुक्त की गिरफ्तारीः- अभियुक्त की गिरफ्तारी के समय मा0उच्चतम न्यायालय के निर्णय डी.के.बसु बनाम स्टेट आफ वेस्ट बंगाल (रिट याचिका (क्रि0) सं0-539/86) निर्णित दिनांक-18-12-1996 में गिरफ्तारी के सम्बन्ध में दिये गये अनिवार्य दिशा-निर्देश का पालन अवश्य करना चाहिये।
गिरफ्तारी के सम्बन्ध में मा0उच्चतम न्यायालय के निर्देश निम्नवत् हैः-
1- पुलिसकर्मी जो गिरफ्तारी करते हैं तथा गिरफ्तार व्यक्ति से पूछताछ करते हैं उन्हें शुद्ध, स्पष्टदर्शी व साफ पहचान की नाम पटिट्का धारण करनी चाहिये। वर्दी के साथ उनके पद के बैज अवश्य हों। उन सभी पुलिस कर्मियों का जो गिरफ्तार व्यक्ति से पूछताछ करते हैं, विवरण एक रजिस्टर में अंकित किया जाना चाहिये।
2- व्यक्ति की गिरफ्तारी के समय पुलिस अधिकारी एक फर्द (मेमो) तैयार करेगा, जिसे कम-से-कम एक व्यक्ति/गवाह द्वारा प्रमाणित किया जायेगा जो या तो अभियुक्त के परिवार का सदस्य हो अथवा उस क्षेत्र का सम्मानित व्यक्ति हो जहाँ पर गिरफ्तारी की गई। इस फर्द पर अभियुक्त द्वारा भी प्रतिहस्ताक्षर कराया आयेगा तथा इस पर गिरफ्तारी का समय व दिनाँक भी ऑकित होना चाहिये।
3- जो व्यक्ति गिरफ्तार किया गया है अथवा निरुद्ध किया गया है या किसी थाने की अभिरक्षा में/पूछताछ केन्द्र पर है या लॉकअप/हवालात में हैं, को यह अधिकार होगा कि उसके किसी मित्र/रिश्तेदार अथवा ऐसे व्यक्ति को जो उससे भली-भांति परिचित हों और उसका हितैषी हो, को जितना शीघ्र सम्भव हो साध्य-साधन से सूचना भेजी जायेगी और जिसमें यह स्पष्ट रूप से बताया जायेगा कि अमुक व्यक्ति गिरफ्तार किया गया और अमुक स्थान पर निरुद्ध किया गया है। यह प्रतिबन्ध ऐसे मामलों पर लागू नहीं होगा जिनमें गिरफ्तारी के मैमो पर गिरफ्तारी किये गये व्यक्ति के मित्र अथवा उसके सम्बन्धी के हस्ताक्षर कराये गये हों।
4- यदि गिरफ्तार किये गये व्यक्ति के मित्र अथवा रिश्तेदार जिले या कस्बे के बाहर के रहने वाले हैं तो उन्हें जिले की “लीगल ऐन्ड आर्गेनाईजेशन” एवं सम्बन्धित थाने द्वारा वायरलैस/टेलीग्राम के जरिये सूचना, गिरफ्तारी का समय एवं स्थान अंकित करते हुये 6 से 12 अंटे के अन्दर अवश्य दे दी जायेगी।
5- जैसे ही कोई व्यक्ति गिरफ्तार होता है पुलिस का यह दायित्व होगा कि वह उसे अपने इस अधिकार से अवगत करा दें कि वह अपनी गिरफ्तारी एवं अवरुद्धि के सम्बन्ध में किसी को सूचना दे सकता है।
6- किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के सम्बन्ध में निरुद्ध रखे जाने के स्थान पर डायरी में यह अंकित किया जाना जरूरी है कि गिरफ्तार व्यक्ति के किसी मित्र/रिश्तेदार को गिरफ्तारी की सूचना दी गई। उन पुलिस कर्मियों के नाम भी अंकित किये जायें, जिनकी अभिरक्षा में गिरफ्तार व्यक्ति को रखा गया है।
7- यदि गिरफ्तार व्यक्ति प्रार्थना करता है तो गिरफ्तारी के समय उसके शरीर की प्रत्येक बड़ी एवं छोटी चोटों का निरीक्षण करके विवरण निरीक्षण मेमो पर अंकित किया जायेगा। इस निरीक्षण मेमो पर गिरफ्तार व्यक्ति तथा पुलिस अधिकारी दोनों के हस्ताक्षर कराये जायें तथा फर्द की एक प्रति गिरफ्तार व्यक्ति को भी दी जाये।
8- हर गिरफ्तार किये गये व्यक्ति की डाक्टरी परीक्षा उसकी निरुद्धि के हर 48 घंटे के अन्दर प्रशिक्षित डाक्टर द्वारा अवश्य कराई जाये, जो महानिदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य द्वारा अनुमोदित पैनल पर हो।
9- सभी अभिलेखों की प्रतियाँ गिरफ्तारी की फर्द सहित जैसा कि ऊपर सन्दर्भित किया गया है, क्षेत्र के मजिस्ट्रेट को उनके रिकार्ड के लिये भेजी जायेगी।
10- बन्दी बनाये गये व्यक्ति को पूछताछ के मध्य अपने अधिवक्ता से मिलने की अनुमति दी जा सकती हैं, परन्तु ऐसी सुविधा सम्पूर्ण पूछताछ के मध्य अनुमन्य नहीं होगी।
11- प्रत्येक राज्य मुख्यालय एवं जिले स्तर पर एक पुलिस कन्ट्रोल रूम बनाया जाये जहां प्रत्येक गिरफ्तार किये जाने वाले व्यक्ति व स्थान की सूचना गिरफ्तार करने वाले अधिकारी द्वारा 12 घंटे की अवधि के भीतर दी जायेगी। कन्ट्रोल रूम के बाहर एक नोटिस बोर्ड लगाया जायेगा, जिस पर सहजदृश्य यह सूचना अंकित की जायेगीः-
“माननीय उच्चतम न्यायालय का यह महत्वपूर्ण निर्णय समस्त भारतवर्ष में प्रभावी है एवं साथ ही साथ यह विधिक व्यवस्था का प्रमुख अंग भी है। अत: आप सभी को निर्देशित किया जाता है कि उपरोक्त वर्णित व्यवस्थाओं को ध्यान में रखकर ही गिरफ्तारी की प्रक्रिया अपनाई जाये तथा माननीय उच्चतम न्यायालय के उक्त दिशा-निर्देशों से अपने अधीनस्थ सभी अधिकारियों/कर्मचारियों को पूर्ण रूप से अवगत कराते हुये अक्षरश: अनुपालन सुनिश्चित कराया जाये।”
जब कोई अभियुक्त अपराध के सम्बन्ध में गिरफ्तार होता है तो उससे निम्न बिन्दुओं पर अवश्य पूछताछ की जायेः-
1- अभियुक्त का नाम,उपनाम,पता,व्यवसाय,शिक्षा व उम्र।
2- अभियुक्त द्वारा घटना करने का कारण पूछा जाये।
3- अभियुक्त के साथियों के नाम-पते (सभी रिश्तेदारों के भी) तथा मोबाइल नम्बर पूछे जायें।
4- अभियुक्त से अवैध शस्त्रों के बारे में पूछ-ताछ की जाये।
5- अभियुक्त द्वारा बतायी गयी बातों की सच्चाई जानने हेतु पूछ-ताछ के दौरान CDR का सहारा अवश्य लिया जाये। अभियुक्त का कथन केस डायरी में अंकित किया जाये।
6- अभियुक्त से चोरी/लूटी हुयी सम्पत्ति के बारे में विस्तृत रूप से अवश्य पूछताछ किया जाये।
7- अभियुक्त के कब्जे से प्राप्त मोबाईल फोन को नियमानुसार कब्जा पुलिस में लेकर उसके सम्बन्ध में भी अभियुक्त से पूछताछ करना चाहिये तथा उक्त मोबाइल फोन में लगे सिम का CDR तथा IMEI रन कराकर एनालिसिस करना चाहिये।
कार्यवाही शिनाख्त वाले अपराधी को अपना चेहरा छिपाये रखने का अधिकारः- पुलिस रेगुलेशन के प्रस्तर 116 के अनुसार उस अभियुक्त को बापर्दा रखा जायेगा, जिसकी कार्यवाही शिनाख्त गवाहों से करायी जानी है और विवेचक को शुरू से ही यह सावधानी बरतनी होगी कि गवाह अभियुक्त के चेहरे को ना देख सकें और अभियुक्त को यह चेतावनी दी जाती है कि वह अपने चेहरे को छिपाकर रखे।
विवेचना में कब्जे में लिये गये सामान (आलाकत्ल,वाहन,फोन,रूपया आदि) की फर्द तैयार करनाः– विवेचक यदि किसी अभियुक्त से या उसके घर से या घटनास्थल से अपराध से सम्बन्धित कोई वस्तु कब्जे में लेता है तो उसकी एक फर्द स्वतन्त्र गवाहों के समक्ष लिखी जानी चाहिये जिसपर गवाहों के व अभियुक्त के हस्ताक्षर बनवाये जाने चाहिये। इस फर्द की एक प्रति अभियुक्त को दी जानी चाहिये और फर्द प्राप्ति के हस्ताक्षर फर्द पर पुनः बनवाये जाने चाहिये। फर्द पर विवेचक के हस्ताक्षर आवश्यक हैं।
आत्मसमर्पण की स्थिति में 14 दिवस पूर्व PCR की कार्यवाहीः- यदि कोई अभियुक्त मा0न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण कर न्यायिक अभिरक्षा में है तो अभियुक्त का बयान मा0न्यायालय की अनुमति से दर्ज कर आवश्यकतानुसार प्रथम रिमाण्ड (14 दिवस के पूर्व) पर ही पुलिस अभिरक्षा रिमाण्ड की मांग मा0न्यायालय से कर लेनी चाहिये।
अपराध स्वीकार करने वाले अभियुक्तों का बयान लेखबद्ध करना तथा धारा 27 साक्ष्य अधिनियम के तहत बरामदगी करनाः- यद्यपि धारा 25 साक्ष्य अधिनियम के अनुसार अभियुक्त द्वारा पुलिस के समक्ष अपराध को स्वीकार करने की बात न्यायालय में मान्य नहीं है परन्तु धारा 27 साक्ष्य अधिनियम के अनुसार अभियुक्त का पुलिस के समक्ष स्वीकार किये गये कथन का उतना भाग न्यायालय में उसके विरूद्ध सिद्ध किया जा सकता है जितना भाग किसी अपराध सम्बन्धी तथ्य की खोज करने में सहायक रहा है। जैसे- अभियुक्त के जुर्म स्वीकारोक्ति के बाद अभियुक्त के निशानदेही पर अभियुक्त द्वारा घटना में प्रयुक्त शस्त्र/तेजाब की बोतल आदि की बरामदगी कराना, धारा 27 साक्ष्य अधिनियम के तहत मजबूत साक्ष्य हैं।
बरामदगी के समय वीडियो रिकार्डिंग कर डीवीडी बनाकर केसडायरी के साथ संलग्न करना लाभदायक होता है। गिरफ्तारशुदा अभियुक्त अथवा PCR पर लिये गये अभियुक्त के निशानदेही पर यदि घटना से सम्बन्धित किसी वस्तु की बरामदगी होती है तो उसे अभियुक्त के साथ मा0न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिये।
बरामदगी स्थल का नक्शा-नजरी बनानाः- अभियुक्त के निशानदेही पर जो भी बरामदगी होती है उस स्थान की नक्शा-नजरी अवश्य बनानी चाहिये तथा भूस्वामी, गृहस्वामी के सम्बन्ध में भी पूर्ण जानकारी करनी चाहिये कि उनकी संलिप्तता तो नहीं है।
अभियुक्त का डाक्टरी परीक्षण करानाः- गिरफ्तारशुदा अभियुक्त अथवा PCR पर लिये गये अभियुक्त को मा0न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व चिकित्सकीय परीक्षण अवश्य कराना चाहिये।
अभियुक्त की फोटोग्राफीः- गिरफ्तारशुदा अभियुक्त अथवा PCR पर लिये गये अभियुक्त की फोटोग्राफी कराकर SR फाईल,आपराधिक इतिहास रजिस्टर, 10 साला रजिस्टर में रखना चाहिये।
अभियुक्त का रिमाण्ड (धारा 167 व धारा 309 सीआरपीसी)
जब कोई अभियुक्त गिरफ्तार किया जाता है तथा उसके विरूद्ध साक्ष्य पाया जाता है तथा यह प्रतीत होता है कि धारा 57 सीआरपीसी के द्वारा नियत 24 घण्टे के अन्दर विवेचना पूर्ण नहीं हो सकती है तब थानाध्यक्ष अथवा विवेचक अभियुक्त को धारा 167 सीआरपीसी के तहत निकटतम न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष केस डायरी के साथ प्रस्तुत करेगा।
न्यायिक मजिस्ट्रेट ऐसे अभियुक्त का ऐसी अभिरक्षा में व इतनी अवधि के लिये जो कुल मिलाकर 15 दिन से अधिक नहीं होगी निरूद्ध किया जाना समय-समय पर प्राधिकृत कर सकता है। कुल मिलाकर 90 दिन से अधिक की अवधि के लिये प्राधिकृत नहीं करेगा जहाँ अन्वेषण ऐसे अपराध के सम्बन्ध में है जो मृत्यु, आजीवन कारावास या 10 वर्ष से अन्यून की अवधि के लिये कारावास से दण्डनीय है।
अन्य मामले में अधिकतम 60 दिन से अधिक की अवधि के लिये प्राधिकृत नहीं करेगा।
जब अभियुक्त के विरूद्ध विवेचक द्वारा आरोप पत्र मा0न्यायालय में दाखिल कर दिया जाता है तब विवेचक द्वारा 167 सीआरपीसी के तहत अभियुक्त का रिमाण्ड प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रहती है बल्कि मा0 न्यायालय द्वारा उक्त अभियुक्त का रिमाण्ड धारा 309 सीआरपीसी के तहत बनाकर न्यायिक अभिरक्षा में प्रेषित किया जाता है।
जमानत का विरोधः- विवेचक का प्रमुख कर्तव्य है कि जो अभियुक्त न्यायिक अभिरक्षा में है तथा जमानत पर छूटने हेतु मा0न्यायालय के समक्ष जमानत प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया है, उसका सार्थक व विधिक तरीके से विरोध करे। अभियुक्त के जमानत प्रार्थना पत्र के विरोध के समय विवेचक को चाहिये कि वह अपराध के सम्बन्ध में उपलब्ध साक्ष्य को मा0न्यायालय के समक्ष विधिक रूप से प्रस्तुत करें साथ ही अभियुक्त के आचरण मानसिक प्रवृत्ति तथा आपराधिक इतिहास का पूर्ण विवरण मा0न्यायालय के समक्ष रखकर न्यायालय को आश्वस्त करें कि अभियुक्त जमानत पर छूटने पर साक्ष्य तथा साक्षी को प्रभावित कर सकता है जो अभियोजन तथा न्याय के हित में नहीं होगा। ऐसा करने पर निश्चित रूप से अभियुक्त का जमानत प्रार्थना पत्र के निरस्त होने की प्रबल सम्भावना रहती है।
जमानत निरस्तीकरण के सम्बन्ध में निम्नानुसार कार्यवाही करायी जानी चाहियेः- जमानत निरस्तीकरण में थाना स्तर से निम्न आधारों पर जमानत निरस्तीकरण का प्रार्थनापत्र सम्बन्धित न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना चाहियेः-
1- अभियुक्त ने पुनः उसी अपराध को कारित किया/जमानत का दुरूपयोग/जमानत की शर्तों का उल्लंघन होना,
2- जमानत के बाद अभियुक्त की दोषिता को इंगित करने वाली कुछ अन्य सामग्री मिली हो, या
3- अभियुक्त किसी भी रीति से अन्वेषण में बाधा डाल रहा हो या अभियुक्त गवाहों को डरा/धमका रहा हो एवं साक्ष्य को तोड़ रहा हो, या
4- अभियुक्त के फरार होने अथवा भूमिगत होने की सम्भावना हो या न्याय से बचने के लिए देश से भागने का प्रयास कर रहा हो,
5- अभियुक्त गवाहों के प्रति हिंसा का प्रयोग कर रहा हो।
6- थाना स्तर से जमानत निरस्तीकरण का प्रस्ताव वादी के शपथ पत्र के साथ।
अभियुक्त की गिरफ्तारी/हाजिर न होने की दशा मेः-
- NBW की कार्यवाहीः- यदि विवेचक को विवेचना से अभियुक्त के विरूद्ध पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं तथा अभियुक्त जानबूझ कर गिरफ्तारी से बचने के उद्देश्य से फरार है तो यह तथ्य मा0न्यायालय के समक्ष लाकर अभियुक्त की गिरफ्तारी हेतु गैर जमानतीय वारन्ट प्राप्त कर अभियुक्त की गिरफ्तारी करनी चाहिये।
- 82 Cr.P.C. की कार्यवाहीः- मा0न्यायालय द्वारा अभियुक्त के विरूद्ध जारी गैर जमानतीय वारन्ट के तामीला के प्रक्रम में जब अभियुक्त की गिरफ्तारी नहीं हो पाती है तथा अभियुक्त गिरफ्तारी से बचने हेतु जानबूझ कर फरार हो जाता है तो गिरफ्तारी के प्रयासों तथा अभियुक्त के फरार होने के तथ्यों को मा0 न्यायालय के समक्ष विवेचक द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। जिसपर मा0न्यायालय द्वारा 82 Cr.P.C. के तहत अभियुक्त के फरार होने की उद्घोषणा जारी किया जाता है, जिसका तामीला मुनादी कराते हुये नियमानुसार विवेचक द्वारा करना चाहिये तथा केस डायरी में उल्लेख अंकित करना चाहिये।
- 174 A भादवि का पंजीकरणः- मा0न्यायालय द्वारा जारी 82 Cr.P.C. के तहत उद्घोषणा (तामीलशुदा) में निर्दिष्ट अवधि (30 दिन से अधिक) व्यतीत हो जाने के पश्चात भी यदि अभियुक्त न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होता है तो अभियुक्त के विरूद्ध 174 (A) भादवि का अभियोग पंजीकृत कर अभियुक्त के विरूद्ध 83 Cr.P.C. के तहत कार्यवाही करने हेतु मा0न्यायालय के समक्ष निवेदन किया जाता है।
- 83 Cr.P.C. की कार्यवाहीः- मा0न्यायालय को अधिकार है कि धारा 82 के अधीन उद्घोषणा जारी होने के पश्चात अभियुक्त की चल या अचल सम्पत्ति की कुर्की का आदेश दे सकता है। कुर्की होने के पश्चात भी यदि अभियुक्त न तो गिरफ्तार होता है और न ही निकट भविष्य में उसके न्यायालय में हाजिर होने की उम्मीद है तो ऐसी स्थिति में उसके विरूद्ध आरोप पत्र न्यायालय के समक्ष प्रेषित किया जाता है तथा आवश्यकतानुसार 299 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही की जाती है।
आरोप पत्रः- विवेचना में यदि अभियुक्त के विरूद्ध पर्याप्त साक्ष्य पाया गया है, तो विवेचक धारा 173 दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अनुसार मुकदमें को आरोप पत्र के द्वारा विचारण हेतु न्यायालय भेजता है। आरोप पत्र में पूरी विवेचना का संक्षिप्त विवरण रहता है। इसी के आधार पर न्यायालय में अभियुक्त के विरूद्ध आरोप बनाया जाता है और उसको पढ़कर सुनाया जाता है।
प्रत्येक विवेचक को आरोप पत्र तैयार करते समय निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिये-
- आरोप पत्र के सभी कालमों की पूर्ति की जाये और कोई कालम खाली न छोड़ा जाये। यदि कोई सूचना शून्य है, तो उस कालम में यह बात स्पष्ट रूप से लिख दी जाये।
- जब तक धारा 82/83 दं0प्र0सं0 की कार्यवाही किसी अभियुक्त के विरूद्ध न की गयी हो तब तक उसका चालन मफरूरी में न किया जाये।
- यदि कुछ अभियुक्त गिरफ्तार हुये हैं और कुछ गिरफ्तार नहीं हुये हैं तो धारा 82/83 दं0प्र0सं0 की कार्यवाही हो जाने के बाद सभी के विरूद्ध आरोप पत्र दिया जाये।
- आरोप वाले कालम में प्रत्येक अभियुक्त के विरूद्ध आरोप को स्पष्ट रूप से लिखा जाये। यह स्पष्ट रूप से लिखा जाये कि अभियुक्त का चालान किस धारा के अपराध में किया जा रहा है।
- यदि अध्याय 12 या 17 में उल्लिखित अपराधों में से किसी की विवेचना करते समय यह ज्ञात होता है कि अपराधी उसी प्रकार के अपराध में पूर्व में सजा पाया है, तो धारा 75 भा0द0वि0 में अधिक दण्ड देने की संस्तुति की जाये।
- गवाहों के नाम पते के सामने यह भी लिखा जाये कि कौन गवाह क्या साक्ष्य देगा। इससे सरकारी वकील या ए0पी0ओ0 को गवाहों को बुलाने में आसानी रहेगी व सबी गवाहों को नहीं बुलाना पड़ेगा।
- यदि आरोप पत्र वाला अपराध ऐसा है जिसमें किसी अधिकारी की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता है, तो आरोप पत्र न्यायालय भेजने से पूर्व स्वीकृति सम्बन्धित अधिकारी से प्राप्त कर ली जाये।
- यदि आरोप पत्र का अभियोग किसी मादक द्रव्य से सम्बन्धित है, तो मादक द्रव्य के परीक्षण के बाद मादक द्रव्य पाये जाने पर ही आरोप पत्र दिया जाये।
- आरोप पत्र में लिंक एवीडेन्स (यदि हो) के साक्षियों के नाम अवश्य लिखे जायें। उदाहरण के लिये बापर्दा अभियुक्त को थाने से न्यायालय व न्यायालय से जेल ले जाने वाले पुलिसकर्मी का या मादक द्रव्यों के परीक्षण के लिये माल को विधि विज्ञान प्रयोगशाला ले जाने वाले पुलिसकर्मी का नाम,पता लिखा जाये।
- यदि विवेचना में कई विवेचक रहे हैं, तो प्रत्येक विवेचक के नाम के सामने उसके द्वारा किये गये कार्य को संक्षेप में लिखा जाये।
- जिन अपराधों में हिंसा का प्रयोग हुआ है उनमें आरोप पत्र देते समय यह प्रार्थना की जाये कि यदि यह अभियुक्त दण्डित किये जाते हैं तो उन्हें आगामी तीन वर्ष तक के लिये शान्ति बनाये रखने हेतु पाबन्द जमानत व मुचलका किया जाये। (धारा 106 दं0प्र0सं0)
- यदि अभियुक्त जेल में है आरोप पत्र निर्धारित अवधि के भीतर दिया जाये अन्यथा अभियुक्त जमानत पर छूट जायेगा।
- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 468 में निर्धारित अवधि में आरोप पत्र न्यायालय भेजा जाये अन्यथा न्यायालय उसके बाद आरोप पत्र पर संज्ञान नहीं लेगा।
- कोई चोट डाक्टर द्वारा विचाराधीन रखी गयी है, तो उसकी पूरक रिपोर्ट प्राप्त करके आरोप पत्र दिया जाये।
- यदि कोई वस्तु विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेजनी हे तो वह भेज कर आरोप पत्र दिया जाये जैसे- रक्त, मिट्टी, बाल, कपड़ा आदि।
नमूना चार्जशीट
- 299 Cr.P.C. की कार्यवाहीः- यदि यह साबित कर दिया जाता है कि अभियुक्त फरार हो गया है और उसके जल्द गिरफ्तार होने की कोई सम्भावना नहीं है, तो उस अपराध के लिये न्यायालय अभियोजन की ओर से पेश किये गये साक्षियों की अभियुक्त की अनुपस्थिति में परीक्षा कर सकता है और उसका अभिसाक्ष्य अभिलिखित कर सकता है और यह साक्ष्य उस अभियुक्त के गिरफ्तार होने पर उस अपराध के विचारण में उसके विरूद्ध साक्ष्य में दिया जा सकता है।
फाईनल रिपोर्ट या अन्तिम रिपोर्टः-
1- धारा 173 दं0प्र0सं0 के प्रावधान में ही पुलिस विवेचना के पश्चात निम्न कारणों से अन्तिम रिपोर्ट प्रेषित करती हैः-
- अभियुक्तों का पता नहीं चला।
- गवाहों ने कार्यवाही शिनाख्त में अभियुक्तों को नहीं पहचाना या सम्पत्ति को नहीं पहचाना।
- साक्ष्य पर्याप्त नहीं है।
- मुकदमा झूठा या गलत पाया गया।
2- किसी अपराध के अभियोग में अन्तिम रिपोर्ट लगाने से पूर्व विवेचक को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिये कि विवेचना में किसी गवाह का बयान लिखने से न छूट गया हो।
3- अन्तिम रिपोर्ट लगाने के बाद अभियुक्त के पकड़े जाने या माल बरामद होने पर अग्रिम विवेचना 173(8) दं0प्र0सं0 के तहत पुनः शुरू की जा सकती है।
4- यदि अभियोग झूठा पाया गया तो धारा 182/211 भा0द0वि0 की कार्यवाही अलग से की जाये।
5- वादी को अन्तिम रिपोर्ट लगाने के बाद सूचित किया जाना आवश्यक है।
6- न्यायालय अन्तिम रिपोर्ट स्वीकार कर सकता है, परन्तु इससे पूर्व वादी को न्यायालय में बुलाकर सुना जाता है, न्यायालय अन्तिम रिपोर्ट पर विचारण भी कर सकता है।
नमूना अन्तिम रिपोर्ट
निरीक्षक विश्वज्योति राय,
जनपद मीरजापुर।
* धन्यवाद *