उपहति (धारा 319 भा0द0वि0)- जो कोई किसी व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा, रोग या अंग-शैथिल्य कारित करता है, वह उपहति करता है, यह कहा जाता है।
घोर उपहति (धारा 320 भा0द0वि0)- उपहति की केवल नीचे लिखी किस्में “घोर” कहलाती हैः-
पहला- पुंसत्वहरण ।
दूसरा- दोनों में से किसी नेत्र की दृष्टि का स्थायी विच्छेदन ।
तीसरा- दोनों में से किसी भी कान की श्रवण शक्ति का स्थायी विच्छेदन ।
चौथा- किसी भी अंग या जोड़ का विच्छेदन ।
पांचवां- किसी भी अंग या जोड़ की शक्तियों का नाश या स्थायी ह्रास ।
छठा- सिर या चेहरे का स्थायी विद्रूपीकरण
सातवां- अस्थि या दांत का भंग या विसंधान ।
आठवां- कोई उपहति जो जीवन को संकटापन्न करती है या जिसके कारण उपहत व्यक्ति 20 दिन तक तीव्र शारीरिक पीड़ा में रहता है या अपने मामूली कामकाज को करने के लिए असमर्थ रहता है।
स्वेच्छया उपहति कारित करना (धारा 321 भा0द0वि0)- जो कोई किसी कार्य को इस आशय से करता है कि तद्द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित करे या इस ज्ञान के साथ करता है कि यह सम्भाव्य है कि वह तद्द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित करे और तद्द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित करता है, वह “स्वेच्छया उपहति करता है”, यह कहा जाता है।
स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना (धारा 322 भा0द0वि0)- जो कोई स्वेच्छया उपहति कारित करता है, यदि वह उपहति, जिसे कारित करने का उसका आशय है या जिसे वह जानता है कि उसके द्वारा उसका किया जाना सम्भाव्य है घोर उपहति है, और यदि वह उपहति, जो वह कारित करता है, घोर उपहति हो, तो वह “स्वेच्छया घोर उपहति करता है” यह कहा जाता है।
स्पष्टीकरण- कोई व्यक्ति स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, यह नहीं कहा जाता है । सिवाय जबकि वह घोर उपहति कारित करता है और घोर उपहति कारित करने का उसका आशय हो या घोर उपहति कारित होना वह सम्भाव्य जानता हो, किन्तु यदि वह यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह किसी एक किस्म की घोर उपहति कारित कर दे, वास्तव में दूसरी ही किस्म की घोर उपहति कारित है, तो वह स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है यह कहा जाता है।
उदाहरण- क यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह य के चेहरे को स्थायी रूप से विद्रूपित कर दे, य के चेहरे पर प्रहार करता है, जिससे य का चेहरा स्थायी रूप से विद्रूपित तो नहीं होता, किन्तु जिससे य को बीस दिन तक तीव्र शारीरिक पीड़ा कारित होती है। क ने स्वेच्छया घोर उपहति कारित की है।
स्वेच्छया उपहति कारित करने के दण्ड (धारा 323 भा0द0वि0)- उस दशा के सिवाय जिसके लिए धारा 334 में उपलब्ध है, जो कोई स्वेच्छया उपहति कारित करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि 01 वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जायेगा ।
खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया उपहति कारित करना (धारा 324 भा0द0वि0)- उस दशा के सिवाय, जिसके लिए धारा 334 में उपलब्ध है, जो कोई असन, वेधन या काटने के किसी उपकरण द्वारा या किसी ऐसे उपकरण द्वारा जो यदि आक्रामक आयुध के तौर पर उपयोग में लाया जाये, तो उससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है, या अग्रि या किसी तप्त पदार्थ द्वारा, या किसी विष या किसी संक्षारक पदार्थ द्वारा या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा या किसी ऐसे पदार्थ द्वारा, जिसका श्वास में जाना या निगलना या रक्त में पहुँचना मानव शरीर के लिये हानिकारक है, या किसी जीव जन्तु द्वारा स्वेच्छया उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि 03 वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जायेगा ।
स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने के लिये दण्ड (धारा 325 भा0द0वि0)- उस दशा में सिवाय, जिसके लिये धारा 335 में उपबन्ध है, जो कोई स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि 07 वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा, और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा ।
खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना (धारा 326 भा0द0वि0)- उस दशा के सिवाय, जिसके लिये धारा 335 में उपबन्ध है, जो कोई असन, वेधन या काटने के किसी उपकरण द्वारा या किसी ऐसे उपकरण द्वारा जो यदि आक्रामक आयुध के तौर पर जब उपयोग में लाया जाये, तो उससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है, या अग्रि या किसी तप्त पदार्थ द्वारा, या किसी विष या संक्षारक पदार्थ द्वारा, या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा, या किसी ऐसे पदार्थ द्वारा, जिसका श्वास में जाना या निगलना या रक्त में पहुंचना मानव शरीर के लिये हानिकारक है, या किसी जाव जन्तु द्वारा स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि 10 वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
अम्ल,आदि का प्रयोग करके स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना (धारा 326क भा0द0वि0)- जो कोई किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग या किन्ही भागों को उस व्यक्ति पर अम्ल फेंककर या अम्ल देकर या किन्हीं अन्य साधनों का, ऐसा कारित करने के आशय या ज्ञान से कि वह सम्भाव्य है कि वह ऐसी क्षति या उपहति कारित करे, प्रयोग करके स्थायी या आंशिक नुकसान कारित करता है या अंग विकार करता है या जलाता है या विकलांग बनाता है या विद्रूपित करता है या निःशक्त बनाता है या घोर उपहति कारित करता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 10 वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा:
परन्तु ऐसा जुर्माना पीड़ित के उपचार के चिकित्सीय खर्चों को पूरा करने के लिये न्यायोचित और युक्तियुक्त होगा :
परन्तु यह और कि इस धारा के अधीन अधिरोपित कोई जुर्माना पीड़ित को संदत्त किया जायेगा।
स्वेच्छया अम्ल फेंकना या फेंकने का प्रयत्न करना (धारा 326ख भा0द0वि0)- जो कोई, किसी व्यक्ति को स्थायी या आंशिक नुकसान कारित करने या उसका अंग विकार करने या जलाने या विकलांग बनाने या विद्रूपित करने या निःशक्त बनाने या घोर उपहति कारित करने के आशय से उस व्यक्ति पर अम्ल फेंकता है या फेंकने का प्रयत्न करता है या किसी व्यक्ति को अम्ल देता है या अम्ल देने का प्रयत्न करता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि 05 वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो 07 वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।
स्पष्टीकरण 1- धारा 326 क और इस धारा के प्रयोजनों के लिये “अम्ल” में कोई ऐसा पदार्थ सम्मिलित है जो ऐसे अम्लीय या संक्षारक स्वरूप या ज्वलन प्रकृति का है, जो ऐसी शारीरिक क्षति करने योग्य है, जिससे क्षतचिन्ह बन जाते हैं या विद्रूपता या अस्थायी या स्थायी निःशक्तता हो जाती है।
स्पष्टीकरण 2- धारा 326 क और इस धारा के प्रयोजनों के लिये स्थायी या आंशिक नुकसान या अंग विकार का अपरिवर्तनीय होना आवश्यक नहीं।
प्रवृत्ति व विचारण हेतु निर्धारित मजिस्ट्रेटः-
1- धारा 323 भा0द0वि0 में वर्णित अपराध असंज्ञेय तथा जमानतीय होता है व इसका विचारण किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकता है।
2- धारा 324 भा0द0वि0 का अपराध संज्ञेय व अजमानतीय होता है, जिसका विचारण किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकता है।
3- धारा 325 भा0द0वि0 का अपराध संज्ञेय व जमानतीय होता है, जिसका विचारण किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकता है।
4- धारा 326 भा0द0वि0 का अपराध संज्ञेय व अजामनतीय होता है, जिसका विचारण प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है।
चोट अथवा घाव के प्रकारः- चोट निम्न प्रकार के होते हैः-
- कन्ट्यूजन (CONTUTION)– इस प्रकार की चोट कुन्दालय (Hard And Blunt Object) द्वारा आती है। इसमें चोट तत्काल लाल रंग तत्पश्चात नीला हो जाता है तथा सूजन (Swelling) भी हो जाती है।
- एब्रेजन (Abrasion)– इस प्रकार की चोट कुन्दालय (Hard And Blunt Object) द्वारा आती है। इसे चोट खरास (खरोंच) भी कहते हैं। इस प्रकार की चोत में त्वचा क्षतिग्रस्त होती है।
- कटा घाव (Incised Wound)– इस प्रकार की चोट तेज धारदार वस्तु से आती है। इसमें चोट के दोनों किनारे साफ कटे होते हैं तथा काफी मात्रा में खून बहने की सम्भावना रहती है। इस प्रकार की चोट में विवेचक को धारा 324 भा0द0वि0 का समावेश करना चाहिये।
- आरपार घाव (Perforated Wound)– इस प्रकार की चोट नुकीले हथियार अथवा गोली से आ सकता है। इसमें घाव शरीर के जिस हिस्से में होते हैं, वहाँ आरपार घाव होता है।
- घोंपा हुआ घाव (Punctured Wound)– इस प्रकार की चोट चाकू, भाला आदि शस्त्र से आता है।
- हड्डी टूटना (Fractured Wound)– इस प्रकार की चोट में हड्डी अथवा हड्डी का जोड़ टूटा हुआ होता है। इस प्रकार के मामलों में विवेचक को धारा 325 भा0द0वि0 का समावेश करना चाहिये।
- जलना (Burn Injury)– इस प्रकार की चोट आग से जलने के कारण आती है।
- बिजली से जलना (Electrical Injury)– इस प्रकार की चोट बिजली (Current) का शरीर में प्रवाह हो जाने के कारण आती है।