चोरी के अपराध के लिये दण्डः-
चोरी के लिए दण्ड (धारा 379 भा0द0वि0)- जो कोई चोरी करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
निवास-गृह आदि में चोरी व ऐसी चोरी के लिये दण्ड (धारा 380 भा0द0वि0)- जो कोई ऐसे किसी निर्माण, तम्बू या जलयान में चोरी करेगा, जो निर्माण, तम्बू या जलयान मानव निवास के रूप में, या सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिए उपयोग में आता हो, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
लिपिक या सेवक द्वारा स्वामी के कब्जे की सम्पत्ति की चोरी व ऐसी चोरी के लिये दण्ड (धारा 381 भा0द0वि0)– जो कोई लिपिक या सेवक होते हुए, या लिपिक या सेवक की हैसियत में नियोजित होते हुए अपने मालिक या नियोक्ता के कब्जे की किसी सम्पत्ति की चोरी करेगा, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
चोरी करने के लिये मृत्यु, उपहति या अवरोध कारित करने की तैयारी के पश्चात चोरी व इसके लिये दण्ड (धारा 382 भा0द0वि0)– जो कोई चोरी करने के लिए, या चोरी करने के पश्चात निकल भागने के लिये, या चोरी द्वारा ली गई सम्पत्ति को रखने के लिए, किसी व्यक्ति की मृत्यु या उसे उपहति या उसका अवरोध कारित करने की, या मृत्यु का, उपहति का या अवरोध का भय कारित करने की तैयारी करके चोरी करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
अपराध की प्रवृत्तिः- धारा 379, 380, 381 भा0द0वि0 के अपराध संज्ञेय अपराध हैं तथा अजमानतीय होते हैं। इन धाराओं में वर्णित अपराधों का विचारण किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकता है। जबकि धारा 382 भा0द0वि0 का अपराध संज्ञेय अपराध है तथा अजमानतीय है इस धारा के अभियोग का विचारण प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा किया जायेगा।