कार्यवाही शिनाख्त
कार्यवाही शिनाख्त के सम्बन्ध में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 54क, पुलिस रेगुलेशन के पैरा 116 व भारतीय साक्ष्य अधिनियम के धारा 09 में पूर्ण विवरण दिया गया है। कार्यवाही शिनाख्त अभियुक्त/संदिग्ध व्यक्तियों की शिनाख्त तथा चुरायी हुयी सम्पत्ति (Stolen Property) तथा दस्तावेजों की पहचान हेतु की जाती है। कार्यवाही शिनाख्त 02 स्तर पर 1- दौरान विवेचना 2- विचारण के समय न्यायालय में की जाती है। विवेचना के दौरान व्यक्ति के कार्यवाही शिनाख्त की प्रक्रिया कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है। कार्यवाही शिनाख्त का विधिक प्रक्रिया निम्नवत् हैः-
1- सी0आर0पी0सी0 की धारा 54कः- अभियुक्त की परीक्षण शिनाख्तः- जब कोई व्यक्ति इस आरोप पर गिरफ्तार किया जाता है कि उसने कोई अपराध किया है और किसी न्यायालय के द्वारा जिसे अधिकारिता है, उसकी किसी साक्षी के द्वारा प्रयोगात्मक पहचान आवश्यक समझी जाती है तो यह विधिपूर्ण होगा कि ऐसे न्यायालय के अनुरोध पर कार्यपालक मजिस्ट्रेट उस गिरफ्तार व्यक्ति की प्रयोगात्मक पहचान की कार्यवाही करेगा।
2- पुलिस रेगुलेशन के पैरा 116- ऐसे सभी मामलों में, जिनमें यह सम्भावना हो कि किसी भी प्रक्रम में संदिग्ध व्यक्ति की गवाहों द्वारा शिनाख्त के लिये परेड अपेक्षित होगी, तो अन्वेषण अधिकारी को यह सुनिश्चित करने के लिये कि कार्यवाही शिनाख्त होने के पूर्व संदिग्ध व्यक्ति को गवाहों द्वारा देख लिए जाने का अवसर प्राप्त नहीं होता, प्रारम्भ से ही कदम उठाना चाहिये। जब शिनाख्त कार्यवाही जेल में इसलिये न की जा सके कि संदिग्ध व्यक्तियों के विरूद्ध ऐसा पर्याप्त साक्ष्य नहीं है कि जिसके आधार पर उन्हें किसी अन्य कारण से गिरफ्तार न किया जा सके, तो अन्वेषण अधिकारी के लिए यह जरूरी होगा कि वह ऐसे मामलों में कार्यवाही मजिस्ट्रेटों के समक्ष किया जाये जैसे कि जेल में की जाती है या यदि कोई मजिस्ट्रेट उपलब्ध नहीं है तो दो प्रतिष्ठित तथा सम्मानित व्यक्तियों के समक्ष की जानी चाहिये और जो यह समाधान कर लेंगे कि कार्यवाही गवाहों और अभियुक्तों दोनों के लिये उचित है। किसी भी मामले में जिसमें शिनाख्त की कार्यवाही का जो जेल में न की जाये, संचालन करने के लिये कोई मजिस्ट्रेट उपलब्ध न हो तो एक राजपत्रित पुलिस अधिकारी को उपस्थित रहने की व्यवस्था की जायेगी।
3- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 09- (सुसंगत तथ्यों के स्पष्टीकरण या पुनःस्थापन के लिये आवश्यक तथ्य)- “वे तथ्य, जो विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य के स्पष्टीकरण या पुनःस्थापन के लिये आवश्यक है अथवा जो किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य द्वारा इंगित अनुमान का समर्थन या खण्डन करते हैं, अथवा जो किसी व्यक्ति या वस्तु का, जिसकी अनन्यता सुसंगत हो, अनन्यता स्थापित करते हैं, अथवा वह समय या स्थान स्थिर करते हैं जब या जहाँ कोई विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य घटित हुआ अथवा जो उन पक्षकारों का संबंध दर्शित करते हैं जिनके द्वारा ऐसे किसी तथ्य का संव्यवहार किया गया था, वहाँ तक सुसंगत हैं जहाँ तक वे उस प्रयोजन के लिये आवश्यक हों।“
कार्यवाही शिनाख्त की प्रक्रिया कब की जाती हैः- किसी भी अपराध के मामले में कार्यवाही शिनाख्त दो स्तर पर 1- दौरान विवेचना 2- विचारण के समय न्यायालय में की जाती है। विवेचना के दौरान संदिग्ध व्यक्ति तथा वस्तु के कार्यवाही शिनाख्त की प्रक्रिया कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है। विचारण के दौरान संदिग्ध व्यक्ति तथा वस्तु के कार्यवाही शिनाख्त की प्रक्रिया सम्बन्धित न्यायालय में किया जाता है।
कार्यवाही शिनाख्त की व्यवहारिक प्रक्रियाः- विवेचना के दौरान जब विवेचक को वादी, पीड़ित अथवा गवाहों द्वारा यह बताया जाता है कि घटना के समय उन्होंने अभियुक्त व्यक्ति को भली-भाँति देखा है परन्तु उसका नाम-पता उन्हें ज्ञात नहीं है, परन्तु सामने आने पर अभियुक्त को देखकर पहचान कर सकते हैं, अथवा सम्बन्धित वस्तु को देखकर पहचान कर सकते हैं तब विवेचक द्वारा गवाहों के बयान से सम्बन्धित केस डायरी के साथ माननीय न्यायालय में कार्यवाही शिनाख्त हेतु आदेशित करने के लिये एक रिपोर्ट देता है। उक्त रिपोर्ट पर मा0न्यायालय द्वारा जिला मजिस्ट्रेट से अनुरोध किया जाता है। जिला मजिस्ट्रेट महोदय के कार्यालय से हर माह कार्यवाही शिनाख्त से एक कार्यपालक मजिस्ट्रेट की डियूटी लगायी जाती है। कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तार अभियुक्तों की जेल के अन्दर कार्यवाही शिनाख्त की प्रक्रिया पूर्ण की जाती है तथा ऐसे मामलों में जहाँ अभियुक्त की गिरफ्तारी हेतु अन्य पर्याप्त साक्ष्य नहीं होते हैं तथा अभियुक्त गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है उसकी कार्यवाही शिनाख्त भी कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा तिथि, समय व स्थान स्वयं निर्धारित करते हुये की जाती है। कार्यवाही शिनाख्त के पूर्व विवेचक तथा मजिस्ट्रेट द्वारा यह निश्चित किया जाता है कि किसी भी भाँति शिनाख्त से पूर्व अभियुक्त/संदिग्ध व्यक्ति को गवाहों द्वारा देखा न जा सके। यदि यह प्रमाणित नहीं होता है कि कार्यवाही शिनाख्त के पूर्व अभियुक्तों को गवाहों द्वारा (घटना के समय के अतिरिक्त) देखा नहीं गया है तो कार्यवाही शिनाख्त का उद्देश्य शून्य हो जाता है। कार्यवाही शिनाख्त के समय संदिग्ध/अभियुक्त के साथ उसी के हुलिया व उम्र के चार अथवा छः व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है तथा लाईन में खड़ा किया जाता है। पहचान करने के लिये गवाहों को बारी-बारी लाईन के एक छोर से दूसरे छोर तक जाने तथा वापस आने का मौका दिया जाता है। इसी दौरान गवाह को पहचान कर अभियुक्त को इंगित करना होता है।
सम्पत्ति के शिनाख्त में यह अतिआवश्यक है कि बरामदगी के समय सम्पत्ति तत्काल सील-मुहर कर दिया गया हो। बरामदगी के समय सम्पत्ति को गवाहों को देखने का मौका किसी भी हाल में न मिला हो। सम्पत्ति की शिनाख्त के लिये हर जनपद में अथवा कभी-कभी कई जनपदों के लिये एक ठेकेदार नियुक्त होता है, जो माँग किये जाने पर शिनाख्त की जाने वाली वस्तु के समान वस्तुओं को उपलब्ध कराता है, जिसमें शिनाख्त की जाने वाली वस्तु का सील कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष खोलकर अन्य वस्तुओं के साथ मिश्रित किया जाता है, तत्पश्चात गवाह को बारी-बारी बुलाकर शिनाख्त करायी जाती है।
कार्यवाही शिनाख्त के सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण तथ्यः-
1- यदि पीड़ित/गवाह ने घटना के समय अभियुक्त को देखा है तथा पहले से उसका नाम-पता जानते-पहचानते हैं तो कार्यवाही शिनाख्त की आवश्यकता नहीं होती है।
2- यदि अभियुक्त प्रथम सूचना रिपोर्ट में नाम-पता सहित नामजद किया गया है तो कार्यवाही शिनाख्त की आवश्यकता नहीं होती है।
3- जब साक्षी अपराधी का नाम-पता नहीं बता सकता है किन्तु दावा करता है कि वह अपराधी को पहचान सकता है यदि उसे उसको दिखाया जाता है। ऐसे मामले में कार्यवाही शिनाख्त आवश्यक होता है।
4- कार्यवाही शिनाख्त के लिये यह आवश्यक है कि विवेचक/अभियोजन यह सुनिश्चित करे कि संदिग्धों को उनकी गिरफ्तारी के समय, पुलिस हवालात में रखने का समय तथा वहाँ से मेडिकल के लिये भेजने के समय, न्यायालय में रिमाण्ड के लिये पेशी तथा वहाँ से कारागार तक कि यात्रा के दौरान अभियुक्त बापर्दा रहे तथा किसी भी हालत में गवाहों द्वारा देखा ना गया हो अन्यथा कार्यवाही शिनाख्त का उद्देश्य शून्य होगा।
5- मात्र पुलिस के समक्ष गवाहों द्वारा अभियुक्त की पहचान करना कार्यवाही शिनाख्त के रूप में मान्य नहीं होगा।
6- जिन अभियुक्तों को घटना के समय ही गिरफ्तार कर लिया गया हो, भले ही उनका नाम-पता तत्समय मालूम ना हो कार्यवाही शिनाख्त की आवश्यकता नहीं है।
7- जहाँ सभी साक्षी अभियुक्त को घटना से पूर्व जानते थे तथा उसे पहचान सकते थे किन्तु वे उसका नाम नहीं जानते थे ऐसे मामले में शिनाख्त परेड कराना आवश्यक नहीं है। (Mohd. Iqbal M.Shaikh v. State Of Maharastra 1998 Cr. LJ2537 (SC) AIR 1998 SC 2864)
8- अभियुक्त के पास से मात्र धन (कैश) की बरामदगी शिनाख्त करवाने के लिये पर्याप्त नहीं है। (Suraj Mal v. State Delhi, AIR 1979 SC 1408)
9- जब अभियुक्त कार्यवाही शिनाख्त कराये जाने की माँग करता है तो इसकी अनुमति दी जानी चाहिये। यह साभी की सत्यता की जाँच करने के लिये भी होगा।
10- जेल में कार्यवाही शिनाख्त के समय जेल मैनुअल के अनुच्छेद 443 के अन्तर्गत अभियुक्त के अधिवक्ता का पास में उपस्थित होने का अधिकार होगा।
11- जब अभियुक्त शिनाख्त में हिस्सा लेने से इनकार कर देता है तो यह उसके प्रतिकूल अवधारणा बनेगी तथा साक्षी के साक्ष्य पर मा0न्यायालय में भरोसा किया जा सकता है। (Johri lal V. State of M.P., AIR 1971 MP 116)
12- कार्यवाही शिनाख्त परेड तब भी की जा सकती है, यदि अभियुक्त जमानत पर हों न कि अभिरक्षा में। (Jarapala Deeplala V. State of A.P., 2006 CrLJ 267,277 (Para29)(AP)
13- कार्यवाही शिनाख्त यथाशीघ्र करानी चाहिये विलम्ब होने पर उद्देश्य का मूल्य कम हो जाता है। (Hasib V. State of Bihar., AIR 1972 SC 283) w