अभियुक्त की गिरफ्तार/गैरहाजिरी के सम्बन्ध में कार्यवाही
अभियुक्त की गिरफ्तारीः–
अभियुक्त की गिरफ्तारी के समय मा0उच्चतम न्यायालय के निर्णय डी.के.बसु बनाम स्टेट आफ वेस्ट बंगाल (रिट याचिका (क्रि0) सं0-539/86) निर्णित दिनांक-18-12-1996 में गिरफ्तारी के सम्बन्ध में दिये गये अनिवार्य दिशा-निर्देश का पालन अवश्य करना चाहिये।
गिरफ्तारी के सम्बन्ध में मा0उच्चतम न्यायालय के निर्देश निम्नवत् हैः-
1- पुलिसकर्मी जो गिरफ्तारी करते हैं तथा गिरफ्तार व्यक्ति से पूछताछ करते हैं उन्हें शुद्ध, स्पष्टदर्शी व साफ पहचान की नाम पटिट्का धारण करनी चाहिये। वर्दी के साथ उनके पद के बैज अवश्य हों। उन सभी पुलिस कर्मियों का जो गिरफ्तार व्यक्ति से पूछताछ करते हैं, विवरण एक रजिस्टर में अंकित किया जाना चाहिये।
2- व्यक्ति की गिरफ्तारी के समय पुलिस अधिकारी एक फर्द (मेमो) तैयार करेगा, जिसे कम-से-कम एक व्यक्ति/गवाह द्वारा प्रमाणित किया जायेगा जो या तो अभियुक्त के परिवार का सदस्य हो अथवा उस क्षेत्र का सम्मानित व्यक्ति हो जहाँ पर गिरफ्तारी की गई। इस फर्द पर अभियुक्त द्वारा भी प्रतिहस्ताक्षर कराया आयेगा तथा इस पर गिरफ्तारी का समय व दिनाँक भी ऑकित होना चाहिये।
3- जो व्यक्ति गिरफ्तार किया गया है अथवा निरुद्ध किया गया है या किसी थाने की अभिरक्षा में/पूछताछ केन्द्र पर है या लॉकअप/हवालात में हैं, को यह अधिकार होगा कि उसके किसी मित्र/रिश्तेदार अथवा ऐसे व्यक्ति को जो उससे भली-भांति परिचित हों और उसका हितैषी हो, को जितना शीघ्र सम्भव हो साध्य-साधन से सूचना भेजी जायेगी और जिसमें यह स्पष्ट रूप से बताया जायेगा कि अमुक व्यक्ति गिरफ्तार किया गया और अमुक स्थान पर निरुद्ध किया गया है। यह प्रतिबन्ध ऐसे मामलों पर लागू नहीं होगा जिनमें गिरफ्तारी के मैमो पर गिरफ्तारी किये गये व्यक्ति के मित्र अथवा उसके सम्बन्धी के हस्ताक्षर कराये गये हों।
4- यदि गिरफ्तार किये गये व्यक्ति के मित्र अथवा रिश्तेदार जिले या कस्बे के बाहर के रहने वाले हैं तो उन्हें जिले की “लीगल ऐन्ड आर्गेनाईजेशन” एवं सम्बन्धित थाने द्वारा वायरलैस/टेलीग्राम के जरिये सूचना, गिरफ्तारी का समय एवं स्थान अंकित करते हुये 6 से 12 अंटे के अन्दर अवश्य दे दी जायेगी।
5- जैसे ही कोई व्यक्ति गिरफ्तार होता है पुलिस का यह दायित्व होगा कि वह उसे अपने इस अधिकार से अवगत करा दें कि वह अपनी गिरफ्तारी एवं अवरुद्धि के सम्बन्ध में किसी को सूचना दे सकता है।
6- किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के सम्बन्ध में निरुद्ध रखे जाने के स्थान पर डायरी में यह अंकित किया जाना जरूरी है कि गिरफ्तार व्यक्ति के किसी मित्र/रिश्तेदार को गिरफ्तारी की सूचना दी गई। उन पुलिस कर्मियों के नाम भी अंकित किये जायें, जिनकी अभिरक्षा में गिरफ्तार व्यक्ति को रखा गया है।
7- यदि गिरफ्तार व्यक्ति प्रार्थना करता है तो गिरफ्तारी के समय उसके शरीर की प्रत्येक बड़ी एवं छोटी चोटों का निरीक्षण करके विवरण निरीक्षण मेमो पर अंकित किया जायेगा। इस निरीक्षण मेमो पर गिरफ्तार व्यक्ति तथा पुलिस अधिकारी दोनों के हस्ताक्षर कराये जायें तथा फर्द की एक प्रति गिरफ्तार व्यक्ति को भी दी जाये।
8- हर गिरफ्तार किये गये व्यक्ति की डाक्टरी परीक्षा उसकी निरुद्धि के हर 48 घंटे के अन्दर प्रशिक्षित डाक्टर द्वारा अवश्य कराई जाये, जो महानिदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य द्वारा अनुमोदित पैनल पर हो।
9- सभी अभिलेखों की प्रतियाँ गिरफ्तारी की फर्द सहित जैसा कि ऊपर सन्दर्भित किया गया है, क्षेत्र के मजिस्ट्रेट को उनके रिकार्ड के लिये भेजी जायेगी।
10- बन्दी बनाये गये व्यक्ति को पूछताछ के मध्य अपने अधिवक्ता से मिलने की अनुमति दी जा सकती हैं, परन्तु ऐसी सुविधा सम्पूर्ण पूछताछ के मध्य अनुमन्य नहीं होगी।
11- प्रत्येक राज्य मुख्यालय एवं जिले स्तर पर एक पुलिस कन्ट्रोल रूम बनाया जाये जहां प्रत्येक गिरफ्तार किये जाने वाले व्यक्ति व स्थान की सूचना गिरफ्तार करने वाले अधिकारी द्वारा 12 घंटे की अवधि के भीतर दी जायेगी। कन्ट्रोल रूम के बाहर एक नोटिस बोर्ड लगाया जायेगा, जिस पर सहजदृश्य यह सूचना अंकित की जायेगी।
“माननीय उच्चतम न्यायालय का यह महत्वपूर्ण निर्णय समस्त भारतवर्ष में प्रभावी है एवं साथ ही साथ यह विधिक व्यवस्था का प्रमुख अंग भी है। अत: आप सभी को निर्देशित किया जाता है कि उपरोक्त वर्णित व्यवस्थाओं को ध्यान में रखकर ही गिरफ्तारी की प्रक्रिया अपनाई जाये तथा माननीय उच्चतम न्यायालय के उक्त दिशा-निर्देशों से अपने अधीनस्थ सभी अधिकारियों/कर्मचारियों को पूर्ण रूप से अवगत कराते हुये अक्षरश: अनुपालन सुनिश्चित कराया जाये।”
जब कोई अभियुक्त अपराध के सम्बन्ध में गिरफ्तार होता है तो उससे निम्न बिन्दुओं पर अवश्य पूछताछ की जायेः-
1- अभियुक्त का नाम,उपनाम,पता,व्यवसाय,शिक्षा व उम्र।
2- अभियुक्त द्वारा घटना करने का कारण पूछा जाये।
3- अभियुक्त के साथियों के नाम-पते (सभी रिश्तेदारों के भी) तथा मोबाइल नम्बर पूछे जायें।
4- अभियुक्त से अवैध शस्त्रों के बारे में पूछ-ताछ की जाये।
5- अभियुक्त द्वारा बतायी गयी बातों की सच्चाई जानने हेतु पूछ-ताछ के दौरान CDR का सहारा अवश्य लिया जाये। अभियुक्त का कथन केस डायरी में अंकित किया जाये।
6- अभियुक्त से चोरी/लूटी हुयी सम्पत्ति के बारे में विस्तृत रूप से अवश्य पूछताछ किया जाये।
7- अभियुक्त के कब्जे से प्राप्त मोबाईल फोन को नियमानुसार कब्जा पुलिस में लेकर उसके सम्बन्ध में भी अभियुक्त से पूछताछ करना चाहिये तथा उक्त मोबाइल फोन में लगे सिम का CDR तथा IMEI रन कराकर एनालिसिस करना चाहिये।
कार्यवाही शिनाख्त वाले अपराधी को अपना चेहरा छिपाये रखने का अधिकारः- पुलिस रेगुलेशन के प्रस्तर 116 के अनुसार उस अभियुक्त को बापर्दा रखा जायेगा, जिसकी कार्यवाही शिनाख्त गवाहों से करायी जानी है और विवेचक को शुरू से ही यह सावधानी बरतनी होगी कि गवाह अभियुक्त के चेहरे को ना देख सकें और अभियुक्त को यह चेतावनी दी जाती है कि वह अपने चेहरे को छिपाकर रखे।
विवेचना में कब्जे में लिये गये सामान (आलाकत्ल,वाहन,फोन,रूपया आदि) की फर्द तैयार करनाः- विवेचक यदि किसी अभियुक्त से या उसके घर से या घटनास्थल से अपराध से सम्बन्धित कोई वस्तु कब्जे में लेता है तो उसकी एक फर्द स्वतन्त्र गवाहों के समक्ष लिखी जानी चाहिये जिसपर गवाहों के व अभियुक्त के हस्ताक्षर बनवाये जाने चाहिये। इस फर्द की एक प्रति अभियुक्त को दी जानी चाहिये और फर्द प्राप्ति के हस्ताक्षर फर्द पर पुनः बनवाये जाने चाहिये। फर्द पर विवेचक के हस्ताक्षर आवश्यक हैं।
आत्मसमर्पण की स्थिति में 14 दिवस पूर्व PCR की कार्यवाहीः– यदि कोई अभियुक्त मा0न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण कर न्यायिक अभिरक्षा में है तो अभियुक्त का बयान मा0न्यायालय की अनुमति से दर्ज कर आवश्यकतानुसार प्रथम रिमाण्ड (14 दिवस के पूर्व) पर ही पुलिस अभिरक्षा रिमाण्ड की मांग मा0न्यायालय से कर लेनी चाहिये।
अपराध स्वीकार करने वाले अभियुक्तों का बयान लेखबद्ध करना तथा धारा 27 साक्ष्य अधिनियम के तहत बरामदगी करनाः- यद्यपि धारा 25 साक्ष्य अधिनियम के अनुसार अभियुक्त द्वारा पुलिस के समक्ष अपराध को स्वीकार करने की बात न्यायालय में मान्य नहीं है परन्तु धारा 27 साक्ष्य अधिनियम के अनुसार अभियुक्त का पुलिस के समक्ष स्वीकार किये गये कथन का उतना भाग न्यायालय में उसके विरूद्ध सिद्ध किया जा सकता है जितना भाग किसी अपराध सम्बन्धी तथ्य की खोज करने में सहायक रहा है। जैसे- अभियुक्त के जुर्म स्वीकारोक्ति के बाद अभियुक्त के निशानदेही पर अभियुक्त द्वारा घटना में प्रयुक्त आलाकत्ल की बरामदगी कराना, लूटी गयी सम्पत्ति की बरामदगी कराना धारा 27 साक्ष्य अधिनियम के तहत मजबूत साक्ष्य हैं।
बरामदगी के समय वीडियो रिकार्डिंग कर डीवीडी बनाकर केसडायरी के साथ संलग्न करना लाभदायक होता है। गिरफ्तारशुदा अभियुक्त अथवा PCR पर लिये गये अभियुक्त के निशानदेही पर यदि घटना से सम्बन्धित किसी वस्तु की बरामदगी होती है तो उसे अभियुक्त के साथ मा0न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिये।
बरामदगी स्थल का नक्शा-नजरी बनानाः- अभियुक्त के निशानदेही पर जो भी बरामदगी होती है उस स्थान की नक्शा-नजरी अवश्य बनानी चाहिये तथा भूस्वामी, गृहस्वामी के सम्बन्ध में भी पूर्ण जानकारी करनी चाहिये कि उनकी संलिप्तता तो नहीं है।
अभियुक्त का डाक्टरी परीक्षण करानाः- गिरफ्तारशुदा अभियुक्त अथवा PCR पर लिये गये अभियुक्त को मा0न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व चिकित्सकीय परीक्षण अवश्य कराना चाहिये।
अभियुक्त की फोटोग्राफीः- गिरफ्तारशुदा अभियुक्त अथवा PCR पर लिये गये अभियुक्त की फोटोग्राफी कराकर SR फाईल,आपराधिक इतिहास रजिस्टर, 10 साला रजिस्टर में रखना चाहिये।